देश के पांच राज्यों ( राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना) में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावी सरगर्मी के बीच चुनाव आयोग ने फेक न्यूज से निपटने के लिए कानून की मांग की है। चुनाव आयोग का कहना है कि कनफ्यूजन को खत्म करने के लिए सीमाओं की जरूरत है।

चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि फिलहाल देश में इस तरह का कोई कानून नहीं है। इस वजह से हमेशा कनफ्यूजन की स्थिति बनी रहती है। उन्होंने बताया कि फेक न्यूज से निपटने के लिए अगस्त में चुनाव आयोग ने एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया था। इस कमिटी के सुझावों को विधायी समर्थन की आवश्यकता होगी।

इसी के साथ चुनाव आयुक्त ने फेक न्यूज की परिभाषा स्पष्ट न होने पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने बताया, “फेक न्यूज के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इसे कैसे परिभाषित किया जाए। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की कुछ परिभाषाएं हैं लेकिन इसके लिए कोई कानून नहीं है।”

लवासा ने कहा, “फेक न्यूज पर लाया गया कानून गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है, यह बात इस कानून को लाने में बाधा नहीं होनी चाहिए। एक सभ्य समाज में कानून उसे बनाने वालों और नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है।”

बता दें कि चुनाव आयोग की यह मांग फेक न्यूज की कई घटनाओं के बाद सामने आई है। इनमें से कुछ अफवाहें तो लोगों की मौत का कारण भी बन गईं। वॉट्सएप और सोशल मीडिया पर फैलाए गए फेक न्यूज की वजह से इस साल मॉब लिंचिंग में कम से कम 28 लोगों की मौत हो चुकी है।

इससे पहले जब फेक न्यूज पर कानून लाने की बात हुई थी तब इस बात पर चिंता प्रकट की गई थी कि इसके जरिेए सरकार संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन कर मीडिया को सेंसर कर सकती है। हालांकि लवासा ने जो कारण गिनाए हैं वह इस तरह का कानून लाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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