भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित (Uday Umesh Lalit) ने 11 अक्टूबर 2022 को अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के नाम की सिफारिश की है. सुप्रीम कोर्ट में हुई सभी न्यायाधीशों की एक बैठक में जस्टिस चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की गई. ये भारत के इतिहास में पहली बार होगा जब पिता और बेटा दोनों भारत के न्यायधीश होंगे. न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश थे. उन्होंने सात साल (1978-1985) से भी अधिक समय तक इस पद को संभाला था.
सरकार को भेजा नाम
मौजूदा मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने केंद्र सरकार द्वारा 7 अक्टूबर 2022 को भेजे गए पत्र का जवाब भेज दिया है, जिसमें सरकार ने उनसे अगले मुख्य न्यायाधीश के नाम के बारे में पूछा था. चले आ रहे प्रोटोकॉल के मुताबिक मौजूदा मुख्य न्यायाधीश को सरकार को अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करने वाला एक औपचारिक पत्र (Formal Letter) भेजना होता है. इसके बाद पत्र को अगले सीजेआई को सौंपने के साथ-साथ कानून मंत्री को भी भेजा जाता है.
दो साल का होगा कार्यकाल
सिफारिश साथ ही न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का 50वां मुख्य न्यायाधीश बनना तय माना जा रहा है. न्यायाधीश चंद्रचूड़ 9 नवंबर को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे और उनका कार्यकाल दो साल एक दिन का होगा. सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्ययाधीश जस्टिस यूयू ललित 8 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. 9 नवंबर को ही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ देश के 50 वें मुख्य नयायाधीश के तौर पर शपथ लेंगे और 10 नवंबर 2024 को रिटायर होंगे.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने 1998 में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्य किया है. उन्होंने 2013 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी. वह बॉम्बे उच्च न्यायालय से भी जुड़े रहे हैं और उन्हें 2016 सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था.
न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़
11 नवंबर 1959 को जन्मे न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढाई की है. इसके बाद उन्होंने प्रतिष्ठित InLaks स्कॉलरशिप की मदद से अमेरिका की प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की. हार्वर्ड में, उन्होंने कानून में मास्टर्स (LLM) और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट (SJD) पूरी की. इसके अलावा उन्होंने ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल, Yale लॉ स्कूल और University of Witwatersrand, दक्षिण अफ्रीका में लेक्चर्स भी दिए हैं.
धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बनने से पहले सुप्रीम कोर्ट के अलावा गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली के उच्च न्यायालयों में एक वकील के तौर पर प्रैक्टिस की है. चंद्रचूड़ को 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था. वर्ष 1998 से 2000 तक उन्होंने भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्य किया.
भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड (2) के तहत नियुक्त किया जाता है. वहीं मुख्य न्यायाधीश के पद के मामले में देश के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश की जाती है.
केंद्रीय कानून मंत्री (Law Minister) द्वारा मुख्य न्यायाधीश के नाम की सिफारिश प्रधानमंत्री को भेजी जाती है और प्रधानमंत्री उसी आधार पर राष्ट्रपति को सलाह देता है.
दूसरे न्यायाधीश मामले में वर्ष 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिये. सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं.
कॉलेजियम देश में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए एक प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों के मामलों) के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के किसी कानून या भारतीय संविधान के प्रावधान द्वारा.
मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार
आम तौर पर देश के मुख्य न्यायाधीश के पद को सुप्रीम कोर्ट में ‘फर्स्ट अमंग इक्वल’ (Primus Inter Pares) के रूप में देखा जाता है. भारत का मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख (Administrative Head) की भूमिका भी निभाता है.
अपनी प्रशासनिक क्षमता में मुख्य न्यायाधीश किसी भी मामले को किसी खंडपीठ को आवंटित करने संबंधी विशेषाधिकार का प्रयोग करता है. इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश, किसी भी मामले की सुनवाई के लिये आवश्यक न्यायाधीशों की संख्या भी तय करता है. इस तरह की प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग बिना किसी आम सहमति के और बिना किसी कारण किया जा सकता है.