आजादी के सत्तर साल बाद भी भारत भूखमरी की काली छाया से मुक्त नहीं हो पाया है। देश का राजधानी दिल्ली में हाल के दिनों में हुई भूख से तीन बच्चों की मौत ने देश को झकझोर कर रख दिया है। बहरहाल, इस मामले में एक नई जानकारी सामने आई है कि पीड़ित परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था।  अब बात ये है कि परिवार का राशन कार्ड क्यों नहीं बना था तो पता चलेगा कि गरीब के लिए राशन कार्ड बनवाना किसी जंग से कम नहीं है, क्योंकि दिल्ली का कोटा फुल हो चुका है। दिल्ली में 19 लाख राशन कार्ड बने हैं, मगर इनमें से 15 लाख से भी अधिक फर्जी हैं। ये सरकार द्वारा निर्धारित मानदंड पूरे नहीं करते हैं। इसकी जांच कराने के लिए संघर्ष कर रहे पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि यह घपला रुकना चाहिए। इस बारे में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन से उनका पक्ष लेने का प्रयास किया गया, मगर उनसे संपर्क नहीं हो सका।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया था। इसके तहत दो तरह के राशन कार्ड बनाए गए। एक सामान्य तथा दूसरा अंत्योदय। सामान्य राशन कार्ड इसमें परिवार के एक सदस्य यानी एक यूनिट पर चार किलो गेहूं व एक किलो चावल मिलता है। गेहूं का दाम दो रुपये प्रति किलो और चावल का मूल्य तीन रुपये प्रति किलो है। कार्ड में परिवार के जितने सदस्य दर्ज हैं, उस हिसाब से राशन मिलता है। अंत्योदय कार्ड प्रतिवर्ष 24 हजार रुपये की आय वाले परिवारों को अंत्योदय कार्ड मिलता है। वर्ष 2013 के बाद दिल्ली में एक भी व्यक्ति को यह कार्ड नहीं मिला है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बेघरों के राशन कार्ड बनने बंद हो गए हैं। इससे भी गरीबों के लिए राशन कार्ड बनवा पाना बेहद जटिल हो गया है, जबकि इन्हें ही राशन कार्ड की अधिक जरूरत है। वहीं, तमाम किरायेदारों के भी राशन कार्ड नहीं बने हैं, क्योंकि मकान मालिक किरायेदार का राशन कार्ड बनाने के लिए लिख कर नहीं देता है।

 

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