जय जवान जय किसान सिर्फ बोल देने से जय नहीं हो जाता। उसके लिए कुछ करना पड़ता है। लेकिन आज दोनों की ही हालत एक ऐसे पराजय वाले मनुष्य की तरह हो गई है जो सिर्फ भटक रहा है और कुछ नहीं। वो कहीं किसी आंदोलन में भटकते हुए मिल जाएगा तो कहीं किसी धरने में भटकते हुए मिल जाएगा। कहीं इलाज के लिए भटकते हुए मिल जाएगा तो कहीं प्रशासन से इंसाफ की दुहाई मांगने के लिए भटकते हुए मिल जाएगा। ऐसे ही एक फौजी भटक रहा है। जी हां, एक सीआरपीएफ जवान पैसे की कमी के कारण बेहतर इलाज के लिए दर-दर भटक रहा है।

दरअसल, मध्यप्रदेश के तरसमा गांव के निवासी सीआरपीएफ जवान की जिंदगी मौत से बदतर हो चुकी है। साल 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में हुई एक नक्सली मुठभेड़ में घायल हुए जवान के पेट में सात गोलियां लगी थीं। इलाज करके तोमर की जान तो बचा ली गई, लेकिन अच्छे इलाज के अभाव में उनकी आंतें पेट में दोबारा नहीं डाली गईं, उसके बाद से ही तोमर पॉलीथीन में आंत रखकर जीवन जीने के लिए विवश हो गए। साथ ही हमले के दौरान गोली लगने के कारण तोमर की एक आंख भी खराब हो गई। उनकी आंखें दुबारा ठीक हो सकती है। साथ ही आंत भी दोबारा पेट में डाली जा सकती हैं, लेकिन इसके लिए करीब 5 से 7 लाख रुपए की जरूरत है। मनोज के पास इतने पैसे नहीं है, यही कारण है कि वह पिछले चार सालों से इतना कष्टदायक जीवन जीने को मजबूर हैं।

बता दें कि मनोज 11 मार्च 2014 को छत्तीसगढ के सुकमा जिले के दोरनापाल में पोस्टेड थे। तभी वह नक्सली हमले में घायल हो गए। इस दौरान उनकी टीम के 11 जवान शहीद हुए थे। इस हमले में सिर्फ मनोज जिंदा बचकर लौटे थे।

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