यह दुनिया सदा से शरणार्थी संकट को झेलती आई है। रोहिंग्या मुसलमानों के लिए भी वही वक्त चल रहा है। वह अपने देश म्यांमार से निकाल दिए गए और अब भारत और बांग्लादेश भी उन्हें अपने यहां पनाह देना नहीं चाहता है। इसी बीच उनके लिए एक और बुरी खबर है। केन्द्र सरकार ने रोहिंग्या को  देश के लिए खतरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में 16 पन्नों का हलफनामा दायर किया है।

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दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अवैध रूप से रह रहे म्यामांर के रोहिंग्या समुदाय के लोगों के भविष्य को लेकर सरकार से अपनी रणनीति बताने को कहा था। सरकार द्वारा रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस म्यांमार भेजने के फैसले के खिलाफ याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था। इसी के जवाब में सरकार ने अपना पक्ष रखा है।

सरकार का हलफनामा में कहना है कि कुछ रोहिग्या शरणार्थियों के पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों से संपर्क का पता चला है। ऐसे में ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से खतरा साबित हो सकते हैं। इसके साथ ही केंद्र को आशंका है कि म्यांमार से अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में आने से क्षेत्र की स्थिरता को नुकसान पहुंच सकता है। केंद्र का कहना है कि रोहिंग्या शरणार्थी नॉर्थ ईस्ट कॉरिडोर की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं।

बता दें कि दो रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। इसके अलावा इस जनहित याचिका में कहा गया है कि उन्हें निर्वासित करने का कदम संविधान के अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का हनन होगा, क्योंकि सरकार ने तिब्बती शरणार्थी और अन्य को वापस जाने को नहीं कहा है।

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गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कहा था कि सरकार 18 सितंबर को रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर सरकार के रुख से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएगी। रोहिंग्या शरणार्थियों पर हो रही राजनीति के बारे में पूछे जाने पर राजनाथ ने कहा था, “हमें जो भी हलफनाम दाखिल करना है, हम 18 सितंबर को करेंगे।”

आजाद भारत में इस तरह के कुल अवैध प्रवासियों की संख्‍या लगभग 40,000 से अधिक है। 9 अगस्‍त को केंद्र ने संसद को सूचित किया था कि उस वक्‍त तक उपलब्‍ध आंकड़ों के अनुसार UNHCR से रजिस्‍टर्ड कम से कम 14,000 रोहिंग्‍या प्रवासी भारत में हैं। ये जम्‍मू, हैदराबाद, उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली-एनसीआर और राजस्‍थान में फैले हैं।

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