भारत के पूर्व में स्थित राज्य उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का उत्सव आज पूरी धूमधाम से शुरू हुआ। चारो तरफ जय  जगन्नाथ का नारा गूंज रहा है।  उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्री क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरंभ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व है। इस रथयात्रा में भाग लेने के लिए हजारों, लाखों की संख्या में लोग आ रहे हैं। इसे श्रद्धालु गुंडिचा महोत्सव के नाम से संबोधित करते है।

बता दें कि जगन्नाथ मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर गुंडिचा मंदिर है। इस मंदिर  को जगन्नाथ स्वामी का जन्मस्थल कहा जाता है। यह रथ यात्रा बहन सुभद्रा के द्वारिका भ्रमण की इच्छा पूर्ण करने के इरादे से श्रीकृष्ण ने करवाई थी। इसी रथ यात्रा को पूरे भारतवर्ष में उसी यात्रा की याद में हर साल मनाया जाता है।

क्या है जगन्नवाथ मंदिर का इतिहास ?

उड़िसा के नीलांचल सागर के पास एक राजा रहा करते थे। एक दिन समुद्र में उन्हें एक बड़ी सी लकड़ी मिली, राजा ने उस लकड़ी से भगवान विष्णु की मूर्ति बनवाने का फैसला किया। इसके लिए एक वृद्ध बढ़ई को बुलाया गया किंतु वह वृद्ध बढ़ई के रूप में स्वयं विश्वकर्मा थे। उन्होंने मूर्ति बनाने के लिए राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह एक कमरे में मूर्ति बनाएंगे किंतु जब तक मूर्ति बन नहीं जाएगी कमरे का दरवाजा कोई नहीं खोलेगा। राजा ने इस शर्त को स्वीकार लिया । किंतु एक दिन गलतफहमी के कारण राजा-रानी ने वह दरवाजा खोल दिया और विश्वकर्मा अर्द्धनिर्मित मूर्ति छोड़ वहां से गायब हो गए।

क्या होता है इस दिन ?

इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा को रथ में बैठाकर भक्तजन रथ को खींचते हैं। यह रथ लकड़ी के बने रहते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उनके पीछे ध्वज रथ पर बहन सुभद्रा और अंत में गरुण ध्वज पर नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ भगवान विराजमान रहते हैं। संध्या तक ये तीनों ही रथ मंदिर में जा पहुंचते हैं। अगले दिन भगवान रथ से उतार लिए जाते हैं और मंदिर में प्रवेश करा उन्हें सात दिन वहीं रखते हैं। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को भक्तगण महाप्रसाद के रूप में मानते हैं।

धार्मिक महत्व

इस उत्सव का अपना ही एक महत्व है। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। मान्यता है कि  जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ जी का दर्शन रथ के दक्षिण दिशा में आते हुए करते हैं वो मोक्ष को प्राप्त होते हैं। पुरी का सबसे मुख्य पर्व होत हुए भी यह रथयात्रा पूरे भारत भर में मनाया जाता है। यहां तक की जो लोग पुरी की रथयात्रा में शामिल नहीं हो पाते हैं, वे अपने नगर की रथयात्रा में अवश्य शामिल होते हैं। भगवान जगन्नाथ जी की यह रथयात्रा सांस्कृतिक एकता और सहज सौहार्द की एक उदाहरण के रूप में देखी जाती है।    

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