एक कहावत है कि ‘तेज हवा का झोका जितनी तेजी से आता है उतनी तेजी से निकल जाता है’, कुछ यूं ही हालात है आज दिल्ली सरकार की। भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और दिल्ली की स्थिती में सुधार के जिम्मेदारी के साथ साल 2015 में आप पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारुढ़ी सीएम शीला दीक्षित का सफाया और बीजेपी को कड़ी टक्कर देकर सत्ता में आई थी। लेकिन अब दो सालों के कार्यकाल में पार्टी पर ’संकट के बादल’ मडरा रहे है। संसदीय सचिव बनाए गए आम आदमी पार्टी के 21 सदस्यों की सदस्यता रद्द करने के मामले की सुनवाई जारी रखने के चुनाव आयोग के फैसले के बाद दिल्ली में मध्यावधि चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है। चुनाव आयोग एक दो सुनवाई के बाद अपना फैसला राष्ट्रपति को सौंप देगा। माना जा रहा है कि आयोग अपने इस फैसले में इन विधायकों की सदस्यता समाप्त करने की भी सिफारिश करेगा, क्योकि दिल्ली के विधानसभा संसद में संसदीय सचिव के पद का कोई जिक्र नहीं है। वहीं दूसरा अनुमान यह लगाया जा रहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ नसीम जैदी अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसलिए मामले पर अंतिम फैसला इसी महीने आ जाएगा।
वहीं भाजपा की नजर अगले साल खाली होने वाली राज्यसभा की तीनों सीटों पर भी है। दिल्ली में जो पार्टी बहुमत में होती है उसी को तीनों सीटें मिलती हैं। इस हिसाब से तीनों सीटें आप को मिलेंगी, लेकिन जो एक से बढ़कर एक कारामात केजरीवाल ने किए उसे देख नहीं लगता की आप सरकार तब तक चल पाएगी। अगर 21 विधायकों पर फैसला अगले महीने आ जाता है तो उन सीटों पर उपचुनाव होंगे, जिसमें आप का जीतना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में बड़े स्तर पर हार झेलने के बजाय केजरीवाल केंद्र सरकार और अफसरों पर पर काम न करने देने का आरोप लगाकर सीधे मध्यावधि चुनाव कराने का जोखिम ले सकते हैं। मुमकिन यह भी है साल के आखिरी तक दिल्ली में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हो जाएं।