जंगलों की कटाई, अवैध खनन, बढ़ते कंक्रीट के जाल और प्रदूषण से विकास के बहाने इंसान अपनी जिंदगी को पहले ही खतरे में डाल चुका है।ऐसे में प्रकृति भी इंसान को सबक सिखा रही है। समय-समय पर हमें नदियों का रौद्र रूप देखने को मिला है। प्रकृति से खिलवाड़ की वजह से पहाड़ में प्राकृतिक जल स्रोत सूखने की वजह से जंगली जानवरों पर भी पीने के पानी का संकट मंडराने लगा है। अब हाथियों के झुंड पानी की तलाश में नदियों का रुख करने लगे हैं।ऐसे में लैंसडौन वन प्रभाग के हाथी कॉरिडोर क्षेत्र के अंदर बहने वाली खो नदी, कण्वाश्रम में मालन नदी और सिगड़ी में सिगड़ी स्रोत में पिकनिक मनाना पर्यटकों की जान पर भारी पड़ सकता है।

लैंसडौन वन प्रभाग कोटद्वार के डीएफओ संतराम के मुताबिक, 43 हजार 327 हेक्टेयर में फैले लैंसडौन वन प्रभाग के कोटद्वार और दुगड्डा रेंज में बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं। लैंसडौन वन प्रभाग में 175 हाथियों का झुंड रहता है।इस रेंज में खो नदी भी है। गजराज के झुंड के साथ छोटे गजराज भी होते हैं। अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़े हाथी बेहद आक्रामक होते हैं। ऐसे में खो नदी के किनारे पिकनिक मना रहे पर्यटक कभी भी जंगली हाथियों के जानलेवा हमले का शिकार हो सकते हैं। लेकिन वन विभाग की चेतावनी के बावजूद लोग पिकनिक मनाने से बाज आने को तैयार नहीं हैं।

इलाके के सिद्धबली मंदिर से दुर्गा देवी तक हाथी बाहुल्य क्षेत्र है। कार्बेट नेशनल पार्क का इलाका होने के कारण हाथियों का झंड नदी नदियों में अठखेलियां करते हैं।ऐसे में खोह नदी के लालपुर और दुर्गा देवी के पास के इलाकों को वन विभाग ने डेंजर जोन घोषित कर दिया है। वहीं, शिकारी भी जंगली जानवरों को दबोचने के लिए नदियों के किनारे ताक में रहते हैं।ऐसे में वन विभाग के सामने जंगली जानवरों की सुरक्षा के साथ ही मानव सुरक्षा की दोहरी चुनौती है।

जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए लैंसडौन वन प्रभाग कोटद्वार के डीएफओ संतराम ने टीमें गठित की हैं।जो 24 घंटे शिकारियों पर पैनी नजर रखती है।

एपीएन, ब्यूरो

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