केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक आज लोकसभा में पेश कर दिया गया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने 124वां संविधान संशोधन विधेयक सदन के पटल पर रखा। विधेयक के उद्देश्य एवं कारणों में लिखा गया है कि अभी आर्थिक रूप से कमजोर लोग बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों से वंचित हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से मजबूत वर्ग के साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाते। यदि वे सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़ेपन के विशेष मानकों को पूरा नहीं करते तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 15 तथा अनुच्छेद 16 के तहत आरक्षण के भी पात्र नहीं होते। इसमें लिखा है “यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को उच्च शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में उचित अवसर मिले, संविधान में संशोधन का फैसला किया गया है।”

विधेयक के जरिये संविधान के 15वें और 16वें अनुच्छेद में संशोधन किया जायेगा। इसके बाद सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 10 प्रतिशत तक आरक्षण मिल सकेगा। यह आरक्षण मौजूदा आरक्षणों के अतिरिक्त होगा और इसकी अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी। इस संविधान संशोधन के जरिये सरकार को “आर्थिक रूप से कमजोर किसी भी नागरिक” को आरक्षण देने का अधिकार मिल जायेगा। “आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग” की परिभाषा तय करने का अधिकार सरकार पर छोड़ दिया गया है जो अधिसूचना के जरिये समय-समय पर इसमें बदलाव कर सकती है। इसका आधार पारिवारिक आमदनी तथा अन्य आर्थिक मानक होंगे।

विधेयक के उद्देश्य तथा कारणों में यह स्पष्ट किया गया है कि सरकारी के साथ निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू होगी, चाहे वह सरकारी सहायता प्राप्त हो या न हो। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत स्थापित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में यह आरक्षण लागू नहीं होगा। साथ ही नौकरियों में सिर्फ आरंभिक नियुक्ति में ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण मान्य होगा।

विपक्ष के विरोध के बीच श्रम संगठन विधेयक लोकसभा में पेश, माकपा का वॉकआउट
वामपंथी दलों तथा कांग्रेस के विरोध के बीच श्रम संगठन (संशोधन) विधेयक, 2019 आज लोकसभा में पेश हो गया। सरकार ने जहां केंद्रीय श्रम संगठनों को संवैधानिक मान्यता देने के लिए इस विधेयक की जरूरत बतायी, वहीं विपक्षी दलों ने विधेयक को बिना उचित पूर्व सूचना के सदन में रखे जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से सरकार को असीमित अधिकार मिल जायेगा और इसलिए वे इस विधेयक के पेश किये जाने का विरोध करते हैं। जब विरोध के बावजूद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने ध्वनिमत से विधेयक पेश करने की अनुमति दे दी तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने विधेयक पेश करते हुये कहा कि केंद्रीय श्रम संगठनों की श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन, उन्हें प्रतिनिधित्व देने के लिए कोई वैधानिक फ्रेमवर्क नहीं था। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में 12 श्रम संगठनों को मान्यता प्राप्त है जिनमें किसे किस मुद्दे पर चर्चा के लिए कहाँ बुलाना है यह तय नहीं था। इस विधेयक के जरिये श्रम संगठनों को संवैधानिक मान्यता देने तथा स्पष्टता लाने का प्रयास किया गया है।

इससे पहले रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन.के. प्रेमचंद्रन ने यह कहते हुये विधेयक का विरोध किया कि विधेयक का उद्देश्य केंद्रीय श्रम संगठनों को मान्यता देने के लिए मानक तय करना है, लेकिन इसमें मानकों के बारे में कहीं स्पष्ट रूप से नहीं लिखा गया है। विधेयक मानक तय करने का अधिकार सरकार पर छोड़ता है जबकि ये मानक संसद में तय होने चाहिये और संसद को बताये जाने चाहिये। माकपा के ए. संपत ने सबसे पहले विधेयक को अचानक पेश किये जाने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आज सुबह 8.30 बजे विधेयक की प्रति सदस्यों की दी गयी जो गलत है। उन्होंने कहा कि विधेयक असंवैधानिक तरीके से पेश किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक कठोर विधेयक है।

माकपा के ही एम.वी. राजेश ने विधेयक को श्रमिकों के साथ मोदी सरकार की बड़ी धोखाधड़ी बताया। उन्होंने कहा कि इसमें केंद्रीय श्रम संगठनों की उस परिभाषा को शामिल नहीं किया गया है जिस पर सहमति बनी थी। इसमें श्रम संगठनों के मान्यता के लिए जिस प्रक्रिया पर सहमति बनी थी उसका भी पालन नहीं किया गया है। नवोद्यम के स्तर पर श्रम संगठनों की मान्यता के मसले पर विधेयक में कुछ नहीं कहा गया है तथा यह श्रमिकों से संगठन बनाने का उनका अधिकार छीनता है। कांग्रेस के शशि थरूर ने भी विधेयक पेश करने के तरीके पर सवाल उठाते हुये कहा कि नियमानुसार विधेयक पेश किये जाने से कम से कम दो दिन पहले सदस्यों को उसकी प्रतियाँ उपलब्ध करायी जानी चाहिये। यदि ऐसा नहीं होता है तो मंत्री को एक ज्ञापन के जरिये इसका कारण बताना होता है। दोनों में से किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
उन्होंने विधेयक को सरकार को असीमित विभेदकारी शक्तियाँ देने वाला बताया। सभी श्रम संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुये हैं और इसलिए सरकार उनके प्रति भेदभाव का रवैया अपना सकती है। उन्होंने विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की माँग की।

लोकसभा में चर्चा : सरकार ने कहा- आज खुलकर समर्थन कीजिए

चर्चा के दौरान अरुण जेटली ने कहा,  अधिकतर राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी करते वक्त अनारक्षित और आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण दिलाने का जुमला उसमें डाला था। यह कानूनी अड़चनों के जरिए नहीं हो पाया था। अगर आप सभी इसका विरोध नहीं कर रहे हैं तो समर्थन खुलकर करिए। और कम्युनिस्ट भाइयों से कहना चाहूंगा कि जब गरीबी के आधार पर यह आरक्षण दिया जा रहा है, तो भारत ऐसा पहला देश होगा, जहां गरीबों के आरक्षण वाले बिल का कम्युनिस्ट विरोध कर रहे होंगे।

जेटली ने कहा- यह केवल भाजपा और एनडीए की बात नहीं है, कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने भी एक जैसी भाषा में इस तरह के आरक्षण की बात कही थी। सवाल यह है कि यह बात केवल घोषणा पत्र तक ही सीमित रहेगी या फिर यह कानून बनेगा? आज कांग्रेस की परीक्षा है। समर्थन कीजिए तो बड़े मन के साथ कीजिए।’

थावरचंद गहलोत ने कहा- सभी को मिलेगा आरक्षण का लाभ

केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘पटेल, जाट, गुर्जर, मुस्लिम, ईसाई और सभी धर्मों के लोग और वे लोग जो एससी-एसटी व ओबीसी आरक्षण के दायरे में नहीं आते, उन्हें इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। सारे देश में सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लोगों के साथ न्याय होगा।’’

विपक्ष : कांग्रेस का सवाल, क्या- एससी-एसटी के लिए निजी संस्थानों में आरक्षण है 

कांग्रेस सांसद केवी थॉमस ने कहा, हमें लगता है कि सरकार जल्दबाजी में है और जल्दबाजी में इतना बड़ा फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि सरकारी सहायता प्राप्त और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण दिया जाएगा। जबकि, एससी-एसटी के लिए गैर-सरकारी संस्थानों में ऐसा नहीं है। नौकरियों की बात आती है, तो सरकार बताए कि रोजगार है कहां?

थॉमस ने कहा- जिनकी आय सीमा 8 लाख रुपए सालाना यानी 63 हजार रुपए महीना है, वे अक्षम नहीं हैं। यह कदम केवल चुनावों को देखते हुए उठाया जा रहा है और कोई होमवर्क नहीं किया गया है। हम इसके खिलाफ नहीं हैं। हम आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के साथ हैं, लेकिन आप इतनी जल्दबाजी में यह कदम क्यों उठा रहे हैं?

अन्नाद्रमुक सांसद थम्बीदुराई ने कहा, आप जो कानून बना रहे हैं, वह सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाएगा। इस देश से जब तक जातिवाद खत्म नहीं होगा, तब तक कुछ नहीं हो सकता है। आजादी के 70 साल बाद भी यहां जातिवाद क्यों है? उत्तर भारत में कई समुदाय पिछड़ा आरक्षण के दायरे में लाए जाने की मांग कर रहे हैं, आपकी सरकार उनके लिए कुछ क्यों नहीं करती?

बसपा ने समर्थन दिया, लेकिन मायावती ने कहा- यह छलावा है

इससे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने विधेयक का समर्थन करने का ऐलान किया लेकिन कहा, ‘”सवर्ण आरक्षण के प्रस्ताव का उनकी पार्टी समर्थन करेगी। लोकसभा चुनाव से पहले लिए गया यह फैसला हमें सही नीयत से लिया गया नहीं लगता है। यह फैसला चुनावी स्टंट के अलावा कुछ और नहीं है। मायावती ने कहा कि देश के ग़रीब सवर्णों को भी आरक्षण की सुविधा दिये जाने की मांग बसपा ने की थी। उन्होंने कहा भाजपा सरकार की चलाचली की बेला में यह फैसला लिया गया है। यह पूरी तरह से राजनीतिक छलावा तथा चुनावी स्टंट है।

आरक्षण के लिए 5 प्रमुख मापदंड

1. परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रु. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
2. परिवार के पास 5 एकड़ से ज्यादा कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए।
3. आवेदक के पास 1,000 वर्ग फीट से बड़ा फ्लैट नहीं होना चाहिए।
4. म्यूनिसिपलिटी एरिया में 100 गज से बड़ा घर नहीं होना चाहिए।
5. नॉन नोटिफाइड म्यूनिसिपलिटी में 200 गज से बड़ा घर न हो।

कैबिनेट ने सोमवार को आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। अभी संविधान में जाति और सामाजिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान है। संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 15 और 16 में आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान जोड़ा जाएगा। अभी एससी को 15%, एसटी को 7.5% और ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जा रहा है। सरकार संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधन करना चाहती है, जिसके जरिए राज्यों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों की तरक्की के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार मिलेगा। विशेष प्रावधान उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से जुड़े हैं। इनमें निजी संस्थान भी शामिल हैं। फिर भले ही वे राज्यों द्वारा अनुदान प्राप्त या गैर अनुदान प्राप्त हों। अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

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