भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) हल्के उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण में तेजी लाने के लिए छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित कर रहा है, लेकिन सीमित विनिर्माण क्षमता के कारण यान के विनिर्माण में निजी क्षेत्र का सहयोग जरूरी है। इसरो की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स की कार्यकारी निदेशक (परिचालन) सूमा डी.आर. ने आज यहां एक कार्यक्रम के दौरान अपने प्रस्तुतिकरण में बताया कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 से 2026 के बीच तीन हजार से ज्यादा हल्के उपग्रहों के प्रक्षेपण की उम्मीद है। ये वैसे उपग्रह हैं जो 50 किलोग्राम से ज्यादा वजन वाले होंगे। इसके अलावा बड़ी संख्या में सूक्ष्म तथा अतिसूक्ष्म उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया जाना है।

श्रीमती सूमा ने बताया कि अभी वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की हिस्सेदारी मात्र एक प्रतिशत है। इसे बढ़ाने के लिए एंट्रिक्स प्रयासरत है। इसरो एक छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित कर रहा है जिसकी प्रौद्योगिकी अगले साल तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। इस प्रक्षेपण यान को सिर्फ तीन दिन में तैयार किया जा सकता है तथा इस पर खर्च भी बहुत कम आयेगा। इसका प्रक्षेपण भी कम खर्च और मानव संसाधन में संभव हो सकेगा।

उन्होंने कहा कि हर साल हम 50 से 60 छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यानों की प्रक्षेपण की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन, इतनी बड़ी संख्या में प्रक्षेपण यान बनाना हमारे लिए संभव नहीं है। इसलिए हम निजी क्षेत्र से उम्मीद करते हैं कि वे प्रक्षेपण यान विनिर्माण में सामने आयें। इसरो इसके लिए प्रौद्योगिकी देगा और शुरुआती मदद भी देगा। बाद में कंपनी को स्वतंत्र रूप से विनिर्माण करना होगा। श्रीमती सूमा ने बताया कि यह एक उभरता हुआ बाजार है और कंपनियाँ अपने स्तर से भी इसमें संभावनाओं का आँकलन कर सकती हैं। इसरो के पास अभी क्षमता कम है और वह वाणिज्यिक माँग पूरी नहीं कर पा रहा क्योंकि उसकी पहली प्राथमिकता देश की सामरिण, रणनीतिक एवं संचार जरूरतों को पूरा करना है।

                                       –साभार,ईएनसी टाईम्स

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