Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की से दुराचार के आरोप में आरोपित को पुलिस फोर्स में ज्वाइन न कराने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस का चरित्र और विश्वसनीयता सही होनी चाहिए। अपराध में बरी होने तक नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। स्क्रीनिंग कमेटी के फैसले पर हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है।
Allahabad HC: नाबालिग से दुराचार का है आरोप
ये आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम श्मशेरी ने सुधीर कुमार की याचिका पर दिया है।याची ने चयन की सारी बाधाएं पार कर लीं, लेकिन अंतिम नियुक्ति में उसके आचरण ने स्वयं ही अवरोध उत्पन्न कर दिया। उसके खिलाफ अपहरण, धोखाधड़ी, षड्यंत्र, नाबालिग से दुराचार के गंभीर आरोप में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है।
हालांकि इससे पहले कोर्ट ने अवतार सिंह केस के फैसले के आलोक में विचार करने का निर्देश दिया था। जिसे अस्वीकार कर दिया गया तो यह याचिका दायर की गई। याची को ज्वॉइन करने की अनुमति नहीं दी गई। कोर्ट ने तमाम फैसलों पर विचार करते हुए हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है।
Allahabad HC: लॉटरी गैंग के खिलाफ अंकुश लगाने का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लॉटरी के नाम पर फोन कॉल से ठगी करने वालों पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया है। प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से इस अपराध पर नियंत्रण के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी के साथ ही व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है।धोखाधड़ी गैंग आम लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटने के लिए लॉटरी और पुरस्कार के फर्जी प्रस्तावों को लेकर उन्हें फोन करते हैं। लोगों में पैसे का लालच देकर बैंक खाता खाली कर रहे हैं।
कुलदीप की याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस जेजे मुनीर ने 30 जून, 2021 के आदेश पर दाखिल हलफनामे पर असंतोष प्रकट किया और नये सिरे से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
Allahabad HC: कोर्ट ने कहा- निर्दोष नागरिकों को फंसा रही गैंग
न्यायालय ने कहा था कि “पुलिस महानिदेशक, ऐसे अपराधियों के देशव्यापी रैकेट का पता लगाने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे, जो धोखाधड़ी के जरिए निर्दोष नागरिकों को लोन का लालच या लकी ड्रा के बारे में आकर्षक प्रस्तावों द्वारा लुभा रहे हैं, ताकि कोरोना के इस कठिन समय में उनकी जेब से मेहनत की कमाई निकाली जा सके।
कोर्ट ने कहा था कि पुलिस महानिदेशक के व्यक्तिगत हलफनामे को पढ़ने से पता चलता है कि यह किसी सरकारी एजेंसी या शैक्षणिक निकाय को दी गई रिपोर्ट है, जो आम तौर पर कानून और व्यवस्था की समस्या के संबंध में उठाए गए कदमों के बारे में है।
अदालत ने कहा कि “पुलिस महानिदेशक ने इस न्यायालय के दिनांक 30 जून 2021 के आदेशों के अनुपालन में जो कुछ किया है, उसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। ऐसी गतिविधियों पर अंकुश कैसे लगे उसका कोई उल्लेख नहीं है। अदालत ने अब डीजीपी को एक सप्ताह के भीतर 28 अप्रैल 2022 तक अपेक्षित व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
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