प्रयाग के पवित्र त्रिवेणी तट पर माघ का मेला सज चुका है, ये मेला लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र हैं। मंगलवार को माघी पूर्णिमा के अवसर पर गंगा नदी के पावन जल से स्नान करने के लिए हजारों श्रद्धालु सवेरे ही तिगरी व बृजघाट में पहुंच गए थे। जहां श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य कमाया। जनवरी माह की इस ठिठुरती ठण्ड में भक्तों ने कई बार गंगा में डुबकी लगाईं। इसी के साथ मंगलवार से एक माह तक चलने वाला कल्पवास भी शुरू हो गया है।

कल्पवास का अर्थ कायाशोधन अर्थात् कायाकल्प है। सारी सुख-सुविधा और मोह-माया को छोड़कर, हजारों लोग यहां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए आते हैं। लोगों का मानना हैं, यहां के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा भी कहा जाता है, इस महीने में सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है, कि गत वर्षों की अपेक्षा में इस वर्ष मेलें में 30 लाख श्रद्धालु तक शामिल हो सकते हैं। भारी भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम कर दिए गए है।

कल्पवास से होते हैं पाप नष्ट

ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी का मानना है, कल्पवास का अर्थ मास पर्यंत साधना होता है। अगर कोई साधक कड़ाई से इसके नियमों का पालन करता है, तो साधक के साथ उनके पुरखों के भी पाप समाप्त हो जाते हैं। कल्पवास के अपने ही नियम और कायदे हैं। साधकों को इसके 21 नियमों का पालन हर हाल में करना होता है। सबसे पहले तीर्थपुरोहित, वैदिक मंत्रोच्चार के बीच संकल्प लेकर तप आरंभ करते हैं। सुख हो या दुख कल्पवास बीच में छोडऩे की अनुमति नहीं दी जाती है। अगर किसी भी स्थिति में इसके नियम खंडित हो जाते हैं, तो इसे नए सिरे से आरंभ करना होता है।

कल्पवासी को सत्य बोलना, दूसरों की निंदा न करना, घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त सिर्फ धार्मिक कृत्यों में लगे रहना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, घास-फूस में सोना, साधारण वस्त्र धारण करना, 24 घंटे में एक बार सात्विक भोजन करना, भोजन स्वयं या घर के सदस्य द्वारा ही बना हो, हिंसा, विलासता से दूर रहना, प्रतिदिन तीन बार स्नान करना, यथासंभव प्रतिदिन दान करना, हर समय जप-तप में लीन रहना, प्रतिदिन तुलसी को जल देना, संतों का प्रवचन सुनना, पूर्वजों के नाम पर जलांजलि व तिलांजलि देना, जनकल्याण को धार्मिक अनुष्ठान कराना, खाली समय में धार्मिक ग्रंथों एवं पुस्तकों का पाठ करने जैसे कठिन नियम का पालन करना होता है। तब ही कल्पवास पूर्ण माना जाता है। 


राजा हर्षवर्धन ने दिया विस्तार
विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डॉ. विपिन पांडेय बताते हैं कि प्रयाग में कल्पवास की प्राचीन परंपरा है। पहले ऋषि-मुनि यहां जंगलों में तप करते थे। गृहस्थों के आगमन की शुरुआत छठीं शताब्दी में अधिक हुई, उस दौर में माघ मास में राजा हर्षवर्धन यहां आकर सर्वस्व न्यौछावर करके लौटते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी प्रयाग में राजा हर्षवर्धन द्वारा किए जाने वाले त्याग का जिक्र किया है। राजा हर्षवर्धन के त्याग की ख्याति से धीरे-धीरे यह परंपरा बढ़ती चली गई।

कल्पवास का वैज्ञानिक महत्व
कल्पवास स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आयुर्वेदाचार्य डॉ. जीएस तोमर इसको उम्र बढ़ाने वाला बताते हैं। उन्होंने बताया, अधिकतर मर्ज का कारण पाचनतंत्र की गड़बड़ी है। कल्पवासी एक समय सात्विक भोजन करते हैं। इससे जरूरत के अनुसार कैलोरी मिलने से पाचनतंत्र ठीक रहता है। गंगाजल का पान करने से शरीर को आंतरिक शुद्धता मिलती है।

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