दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (2 जनवरी) को वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू की। इस दौरान याचिकाकर्ता द्वारा सूचित किया गया कि दुनिया में 52 देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच को बताया गया कि नेपाल, युगांडा, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भी वैवाहिक बलात्कार अपराध है।
बेंच ने कहा कि वह जानना चाहता है कि ऐसा क्या था कि इन देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया। इस पर याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि कानून सिर्फ सार्वजनिक मामलों या जगहों पर प्रभावी होता है, घर में घरेलू हिंसा अभी भी कानून के दायरे से परे है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ऐसे कानून की सख्त जरुरत है जो महिलाओं के संरक्षण के पहलू को भी शामिल करता हो। यौन हिंसा के खिलाफ कानून समाज की आवश्यकता है। कई देशों में वैवाहिक बलात्कार अब भी अपराध नहीं है। यूके में भी हाउस ऑफ लॉर्डस ने 250 वर्षों के बाद वैवाहिक बलात्कार को अब के हिसाब से गलत बताया।
बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि “विवाह बंधन आपको कुछ मामलों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करता है। एक बार जब आप अपवाद लाएंगे तो पूरे अधिनियम का अर्थ बदल जाएगा। ”
याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि विवाहित जीवन में कुछ भी करने से पहले सहमति जरूरी है। अगर शादी से पहले मैं उस महिला से यौन संबंध रखता हूं तो यह बलात्कार के तौर पर माना जाएगा और दंडनीय है, लेकिन अगर मैं उस महिला से विवाह करता हूं और फिर वही करता हूं तो यह मुझे प्रतिरक्षा देता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अध्ययन साफ बताते हैं कि विवाहित जीवन की तुलना में अविवाहित जीवन में हिंसा का स्तर कम है।
बेंच ने झूठी शिकायतों के बारे में भी सवाल किया कि पति यह तर्क देंगे कि उन्हें पत्नियों द्वारा गलत तरीके से फंसाया गया जैसा कि घरेलू हिंसा के कई मामलों में हुआ है। इस पर याचिकाकर्ता ने बेंच से कहा कि एक अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में 49 प्रतिशत पुरुष सहमत हुए हैं कि हां वह वैवाहिक बलात्कार में शामिल होते हैं और राजस्थान में 26.8 प्रतिशत पुरुषें ने यह माना हैं। इसलिए इन आँकड़ों से साफ है कि करीब आधे पुरुष वैवाहिक बलात्कार में शामिल होते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले पर अब 3 जनवरी को अगली सुनवाई करेगा।