काले धन के कुबेर नोएडा के पूर्व इंजीनियर यादव सिंह को बचाने के लिए पूर्व की अखिलेश सरकार ने न सिर्फ राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल किया बल्कि सजा से उसे बचाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। इसका खुलासा एक आरटीआई में हुआ है जिसमें कहा गया है कि यादव सिंह को बचाने के लिए अखिलेश सरकार ने 21.15 लाख रुपए खर्च किए थे।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा दायर की गई याचिका के जवाब में जनसूचना अधिकारी सुरेंद्र पाल सिंह ने बताया कि तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए 4 वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किए थे।
किन वकीलों को कितना पैसा दिया-
-अधिवक्ता कपिल सिब्बल को 8.80 लाख रुपये।
-हरीश साल्वे को 5 लाख रुपये।
-राकेश द्विवेदी को 4.05 लाख रुपये।
-दिनेश द्विवेदी को 3.30 लाख रुपये।
नूतन ठाकुर ने कहा, यह वास्तव में अफसोसजनक है कि यादव सिंह जैसे दागी को बचाने के लिए राज्य सरकार ने इतनी भारी धनराशि खर्च की। योगी सरकार को इसकी जांच कराकर पूरा पैसा वसूलना चाहिए। नूतन द्वारा दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले को सीबीआई को स्थानांतरित किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर किया था जो 16 जुलाई 2015 को पहली सुनवाई के दिन ही खारिज हो गई थी। लेकिन अखिलेश यादव सरकार ने सीबीआई जांच से बचने के लिए हर संभव प्रयास किया था।
क्या है यादव सिंह का मामला
यादव सिंह ने रिश्वत लेकर ठेकेदारों को टेंडर दिए और भ्रष्टाचार फैलाया। इनकम टैक्स के छापे के दौरान यादव सिंह के घर से अरबों रुपए की संपत्ति और आभूषण मिले थे। इसके बाद यादव सिंह पर धारा 409, 420, 466, 467, 469, 481 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया था।
कौन है यादव सिंह?
यादव सिंह एक डिप्लोमाधारी इंजीनियर था। 80 के दशक में जब दिल्ली से सटे नोएडा को एक शहर के तौर पर बसाने की योजना बनी। तो नोएडा अथॉरिटी में कई बेरोजगारों को नौकरी मिली। इसी दौर में यादव सिंह को भी अथॉरिटी में नौकरी मिल गई। 1995 तक यादव सिंह दो प्रमोशन पाकर पहले जूनियर इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और असिस्टेंट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर बन चुका था। उत्तर प्रदेश में शासन चाहे किसी भी पार्टी का हो, यादव सिंह सबका चहेता बना रहा। वो मायावती की सरकार में भी उनका करीबी बना रहा। 2003 में समाजवादी पार्टी की सत्ता आने पर उसकी एसपी नेताओं से भी सांठगांठ रही। अपने राजनीतिक रसूख की वजह से यादव सिंह की लखनऊ की सत्ता के गलियारों में पहुंच बनी रही।