जानिए क्या होता है परिसीमन और Assam में इसे लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल…

Delimitation को अगर हम आसान शब्दों में समझे तो इसका अर्थ है कि किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है।

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Assam Delimitation

भारतीय निर्वाचन आयोग ने 27 दिसंबर 2022 को एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि असम (Assam) में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन (Delimitation) की प्रक्रिया को वर्ष 2001 में की गई जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा। देश के उत्तर पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में अभी 14 लोकसभा और 126 विधानसभा क्षेत्र हैं।

चुनाव आयोग की इस घोषणा के बाद असम सरकार ने नये बनाए गए चार जिलों को उनके पहले के जिलों जिनसे निकालकर वो नये जिले बनाए गए थे, के साथ ही वापस विलय को मंजूरी दे दी है। इसके पिछे का कारण ये है कि चुनाव आयोग (Election Commission of India) द्वारा चुनाव और परिसीमन की घोषणा के बाद से राज्य में किसी भी प्रशासनिक इकाई को स्थापित नहीं किया जा सकता है, तब तक चुनाव या परिसीमन का कार्य पूरा न हो जाये।

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क्यों उठ रहे हैं परिसीमन प्रक्रिया को लेकर सवाल?

चुनाव आयोग के अनुसार यह प्रक्रिया 2001 की जनगणना के आंकड़ों पर आधार पर होगी और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के तहत किया जाएगा। इसको लेकर विपक्ष कह रहा है कि आखिर परिसीमन की यह प्रक्रिया वर्ष 2011 की बजाय 2001 की जनगणना के आधार पर क्यों की जा रही है? इसको लेकर तर्क भी दिया जा रहा है कि राज्य में इससे पहले वर्ष 1976 में हुए अंतिम परिसीमन में 1971 की जनगणना को आधार माना गया था।

आंकड़ो के अनुसार वर्ष 1971 में असम की आबादी 1.46 करोड़ थी जो 2001 में बढ़कर 2.66 करोड़ तो वहीं 2011 में 3.12 करोड़ हो गई थी। केंद्र सरकार ने इससे पहले मार्च 2020 में जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड को लेकर एक परिसीमन आयोग गठित करने की अधिसूचना जारी की थी।

वहीं, विपक्ष की ओर से उठ रहे सवालों और लगातार हो रही आलोचनाओं के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) का कहना है कि परिसीमन प्रक्रिया से राज्य के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा होगी। सरमा का कहना है कि, परिसीमन प्रक्रिया डेटा (Data) पर आधारित एक गैर-राजनीतिक प्रक्रिया होगी और इस प्रक्रिया को भावनाओं पर नहीं बल्कि तर्क पर आधारित होनी चाहिए।

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विपक्ष क्यों उठा रहा है सवाल?

लंबे समय के बाद हो रही परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर कांग्रेस (Congress) समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां कह रहीं हैं कि परिसीमन को 2001 की जनगणना को आधार वर्ष बनाकर क्यों किया जा रहा है? कांग्रेस ने इस परिसीमन की प्रक्रिया से जुड़े तौर-तरीकों पर नजर रखने के लिए एक कमेटी का गठन किया है तो वहीं ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के मुखिया सह लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल ने इसे राज्य और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा का राजनीतिक एजेंडा बताया है। असम की विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि भाजपा इस परिसीमन के जरिए असम के खासकर निचले हिस्से की कई मुस्लिम बहुल सीटों का अंकगणित बिगाड़ सकती है।

असम में नेता प्रतिपक्ष देवव्रत सैकिया ने परिसीमन प्रक्रिया का स्वागत करते हुए कहा है कि इसका लंबे समय से इंतजार था, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने एक सवाल किया कि “इसके लिए वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? इस तरह का फैसला लेने से पहले सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या इससे कोई अच्छा उद्देश्य पूरा होगा भी या नहीं?”

क्या है Delimitation?

परिसीमन को अगर हम आसान शब्दों में समझे तो इसका अर्थ है कि किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है। सीमाओं के निर्धारण को लेकर परिसीमन आयोग को बिना किसी कार्यकारी प्रभाव के काम करना होता है।

भारत के संविधान के अनुसार, परिसामन (Delimitation) को लेकर भारतीय निर्वाचन आयोग का निर्णय अखिरी होता है और उसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि चुनाव में देरी न हो। इसके अलावा परिसीमन आयोग के आदेश को जब लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखा जाते है, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

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क्यो पड़ती है परिसीमन की जरूरत?

देश के हरेक हिस्से में निवास करने वाली जनसंख्या के प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान करना के लिए परिसीमन किया जाता है। इसके साथ ही भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन किया जाता है ताकि चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को दूसरों के मुकाबले ज्यादा फायदा न हो। वहीं, परिसीमन में “एक वोट एक मूल्य” के सिद्धांत के पालन को भी सुनिश्चित किया जाता है।

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कौन करता है परिसीमन आयोग की नियुक्ति?

देश में परिसीमन आयोग को भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है और यह भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है। परिसीमन आयोग मे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज, देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त, जिस राज्य मे चुनाव हो रहा है वहां के निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।

क्या होती है परिसीमन की प्रक्रिया?

भारत में हर 10 साल के बाद की जाने वाली जनगणना (अंतिम बार 2011 में हुई थी) के बाद संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद–82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम को लागू किया जाता है। वहीं, संविधान के अनुच्छेद 170 (Article 170) के तहत राज्यों को भी हरेक 10 वर्ष के बाद होने वाली जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा जाता है। एक बार इस अधिनियम को लागू होन जाने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।

भारत में पहली बार परिसीमन को लेकर अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा, निर्वाचन आयोग की मदद से, 1950-51 में किया गया था। लेकिन इसके बाद 1952 में परिसीमन को लेकर ‘परिसीमन आयोग अधिनियम 1952’ अधिनियमित किया गया था। देश में अब तक चार बार 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया जा चूका है। वहीं, वर्ष 1981 और वर्ष 1991 में हुई जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया था।

Delimitation को लेकर क्यों रहती हैं शिकायत?

परिसीमन आयोग को लेकर सबसे कड़ा रुख देश के दक्षिणी राज्यों का रहता है। देश के जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) में कम रुचि लेते हैं उन्हें संसद (लोकसभा और राज्यसभा) में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। वहीं दक्षिणी राज्यों का कहना है कि परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के कारण उनको अपनी सीटें कम होने की आशंका का सामना करना पड़ा।

भारत में वर्ष 2002 से लेकर 2008 तक जितने भी परिसीमन किए गए थे वो 2001 की जनगणना के आधार पर किये गए थे। लेकिन वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर बांटी गई संसद और विधानसभाओं की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था।

वर्ष 2003 में किये गए 87वें संविधान संशोधन अधिनियम में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया, न कि वर्ष 1991 की जनगणना के आधार पर। 2003 मे ही संविधान के संसोधन अधिनियम के तहत लोकसभा (Lok Sabha) एवं राज्यसभा (Rajya Sabha) सीटों को क्रमशः 550 तथा 250 तक सीमित कर दिया है।

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