भारत की नदियो का पानी नहाने लायक भी नही बचा है। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। आरटीआई में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से बताया गया है कि देश में बह रही 62 फीसदी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं।

आरटीआई में नदियों के किनारे बने बड़े शहरों को इसकी वजह बताया गया हैं। अधिकांश शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। यही नहीं देश की लगभग 223 नदियों का पानी इस हद तक प्रदूषित है कि उनसे आचमन भी नहीं किया जा सकता।

जिस गंगा और यमुना के लिए केंद्र सरकार हर साल हजारों अरबों करोड़ खर्च करती है वह भयंकर रूप से प्रदूषित हैं। जो 62 फीसदी नदियां भयंकर रूप से प्रदूषित हैं उनमें गंगा और यमुना और इनकी सहायक नदियां शामिल हैं।

देश की 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि देश की सिर्फ 198 नदियां स्वच्छ हैं जो छोटी नदियां हैं। वहीं बड़ी नदियों का पानी प्रदूषण की चपेट में है प्रदूषण का लेवल बढ़ने से नदियों के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गयी है।

ऑक्सीजन की मात्रा कम होने की वजह से जल में रहने वाले जीवों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। नदी में मल-मूत्र के अलावा मानव और पशुओं के शव तथा कूड़े-कचड़े का प्रभाव नदियों के संतुलन को प्रभावित कर रहा है।

नदियों का सबसे बुरा हाल महाराष्ट्र में है। जहां राज्य की सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, वहीं 45 नदियों का पानी भयंकर प्रदूषित है। वहीं उत्तर प्रदेश में 11 नदियां प्रदूषित हैं, जबकि 4 स्वच्छ पाई गयी हैं।

सबसे खराब हालात उत्तराखंड के हैं यहां की 9 नदियां प्रदूषित हैं, जबकि 3 ही स्वच्छ हैं। बिहार की 3 और झारखंड की 6 नदियां प्रदूषित हैं। दक्षिण-पूर्व भारत में सबसे ज्यादा स्वच्छ नदियां हैं।

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