भारतीय लोकतंत्र को ‘वार्षिक वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक’ में करारा झटका लगा है। पिछले साल ‘अर्थशास्त्री खुफिया इकाई’ के सूचकांक में 32वें स्थान पर शुमार भारतीय लोकतंत्र इस साल 10 पायदान लुढ़ककर 42वें स्थान पर आ पहुंचा है। इस नुकसान का जिम्मेदार भारत में रूढ़िवादी धार्मिक विचारधाराओं के बढ़ने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को बताया जा रहा है।

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जारी आंकड़ों से ये बात साफ़ है कि अन्य 41 देशों की अपेक्षा में भारत के लोकतंत्र के प्रति लोगों का विश्वास कम होता जा रहा हैं। इस सूचकांक में 165 स्वतंत्र देशों और दो भूखंडों को पांच श्रेणियों में सूचीबद्ध किया गया है। इस सूचकांक में नार्वे को नंबर वन पर काबिज किया गया है और इसी के साथ नार्वे का लोकतंत्र दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र बन गया है।

मीडिया की अंशत: आजादी बनी वजह
विभिन्न देशों में मीडिया की आजादी के अध्ययन में पाया गया कि भारतीय मीडिया अंशत: आजाद है। सूचकांक के अनुसार, भारतीय पत्रकारों को सरकार, सेना और चरमपंथी समूहों से खतरा है। इसके अलावा हिंसा के जोखिम ने भी मीडिया की कार्यशैली को प्रभावित किया है। प्रशासन ने मीडिया की आजादी को खत्म करके रख दिया है, यहां तक कि 2017 में कई पत्रकारों की हत्या भी हुई है। पत्रकारों के साथ हिंसा की घटनाओं ने भारत को कमजोर लोकतंत्र देशों की सूची में शामिल करा दिया हैं।

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पूर्ण लोकतंत्र सूची में मात्र 19 देश

167 देशों में से सिर्फ टॉप-19 देशों को ही पूर्ण लोकतंत्र का दर्जा दिया गया है। इस सूचकांक में नॉर्वे एक बार फिर पहले स्थान पर जगह बनाने में सफल रहा। इसके बाद आइसलैंड और स्वीडन को क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रखा गया हैं। 110वें स्थान वाले पाकिस्तान, 92वें स्थान वाले बांग्लादेश, 94वें स्थान वाले नेपाल और 99वें स्थान वाले भूटान को मिश्रित लोकतंत्र वाले वर्ग में रखा गया है। इस सूचकांक में उत्तर कोरिया सबसे निचले पायदान पर है जबकि सीरिया उससे महज एक स्थान ऊपर यानी 166 वें स्थान पर है।

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