Saamna Editorial: मॉनसून की पहली बारिश ने धो डाले सरकार के दावे, ‘सामना’ के संपादकीय में सरकार पर जमकर वार

Saamna Editorial: संपादकीय में लिखा है कि मुख्यमंत्री ने जलजमाव से परेशान जनता को सलाह दी है कि 'शिकायत किस बात की, बारिश का स्वागत करो', ये जनता के जख्मों पर नमक छिड़कना है।

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Saamna Editorial on Mumbai Rainfall
Saamna Editorial:

Saamna Editorial: मॉनसून की पहली बारिश के बाद मुंबई शहर पानी-पानी हो गया।लोगों को अलग-अलग जगहों पर जलभराव की वजह से दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा। इसे लेकर शिवसेना (UBT) ने सामना में अपने संपादकीय के जरिए शिंदे-फडणवीस सरकार पर जमकर हमला बोला।संपादकीय में लिखा है कि पहली ही बारिश में शिंदे-फडणवीस सरकार के दावे पानी में बह गए।

70 मिमी बारिश ने कलई खोल दी, सरकार को शर्म आनी चाहिए। सामना ने अपने संपादकीय में लिखा है कि बारिश के आने से किसान तो राहत में हैं लेकिन मुंबई के लोग दहशत में आ गए हैं।

शनिवार (24 जून) की पहली बारिश ने मुंबई की चूलें हिला दीं। शिंदे-फडणवीस सरकार ने जोर-शोर से इस बात का दावा किया था कि इस बार जलभराव नहीं होगा। मुंबईकरों को परेशानी नहीं होगी, लेकिन ये वादे फेंकूगीरी साबित हुए। मुंबई के लोगों के मन में सवाल है कि 70 मिमी बारिश से मुंबई का यह हाल हुआ है तो अगले दो-तीन महीनों में हमारी कैसी दुर्दशा होगी?

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मॉनसून की पहली बारिश के बाद मुंबई शहर पानी-पानी हो गया।

Saamna Editorial: मुख्‍यमंत्री को घेरा

Saamna Editorial: आरोप लगाया गया है कि सरकार मुंबई के लोगों को आश्वस्त करने की बजाय उनसे ही सवाल कर रही है। संपादकीय में लिखा है कि मुख्यमंत्री ने जलजमाव से परेशान जनता को सलाह दी है कि ‘शिकायत किस बात की, बारिश का स्वागत करो’, ये जनता के जख्मों पर नमक छिड़कना है।
शिंदे-फडणवीस सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर लोगों को 24 घंटे में 1200 शिकायतें क्यों दर्ज करानी पड़ीं 70 मिलीमीटर बारिश से प्रशासन की कलई खुल गई।

इस बात को लेकर सरकार को शर्म आनी चाहिए। लेकिन इसकी बजाय लोगों से यह कहना कि ‘बारिश का स्वागत करो, शिकायत मत करो’, यह तो ‘चोरी और ऊपर से सीनाजोरी’ वाली ही बात हो गई।

Saamna Editorial:दावों का वस्त्रहरण- सामना

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मॉनसून की पहली बारिश के बाद मुंबई शहर पानी-पानी हो गया।

संपादकीय में आगे कहा गया है कि पहली ही बारिश में आपके दावों का ‘वस्त्रहरण’, यह आपका ही पाप है। आनेवाले समय में इस समस्या का समाधान क्या होगा और मुंबईवासियों को कम से कम परेशानी कैसे हो, इस पर विचार कीजिए? महज निरीक्षण और दौरों से कुछ भी हासिल नहीं होगा। वह आपकी बारात के पीछे नाचनेवाली घोड़ी की तरह है। निरीक्षण दौरे से आपको तो काफी संतुष्टि मिलेगी, लेकिन जनता को कोई राहत नहीं मिलेगी।

बारिश के पानी में डुबा देंगे वोटर- सामना

संपादकीय में लिखा गया है कि लोगों को हुई परेशानियों को दूर करने की बजाय, ‘बारिश का स्वागत करें, आप शिकायत क्या करते हैं?’ ऐसा ओछा सवाल जनता से पूछनेवाले शासक मुंबईकरों की गर्दन पर बैठे हैं, लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि इस उद्दंडता के लिए मुंबई के मतदाता कल बारिश के इसी भरे हुए पानी में डुबो देंगे!

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