83 World Cup: भारत के लिए 1983 ऐसा साल रहा था जहां से भारत में क्रिकेट का एक तरह से नया जन्म हुआ था। साल 1983 की विश्वकप जीत को लगभग 40 साल होने को हैं लेकिन अगर आप पीछे मुड़ कर देखेंगे तो लगेगा कि यह कुछ समय पहले ही तो गुजरा है। 1983 का ट्रेलर आने के बाद लोगों की जिस तरह से दिलचस्पी जागी है यह साबित करता है कि भारत में अभी भी लोग उस जीत को लेकर कितने उत्सुक हैं। यह जीत तब की है जब आधी से ज्यादा आबादी पैदा भी नहीं हुई थी।
इस विश्व कप मुकाबले में कई ऐसे मौके आए जो लोगों को अबतक याद हैं। कपिल देव का वो रनिंग कैच जिसने विव रिचर्ड्स को पवेलियन भेजा था। उस समय एक और वाकया हुआ था जो सबको अभी तक जरूर याद होगा। बलविंदर संधू का बनाना इनस्विंगर जिसने गॉर्डन ग्रीनिज का विकेट लेकर दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी थी। जिसका जिक्र आज भी किया जाता है।
83 World Cup के बाद बदली किस्मत
83 World Cup की जीत के बाद भारत में क्रिकेट को लेकर लोगों में जो परवान चढ़ा था वो आजतक देखने को मिल रहा है। जिस समय यह विश्व कप हुआ था तब शायद ही घर-घर में टीवी रहा होगा। पूरे मोहल्ले में एक ही टीवी हुआ करता था, वो भी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होता था। जिसके घर में टीवी होता था, उसके घर लोगों का मेला लगा रहता था। टीवी के आस-पास पूरे मोहल्ले के लोग इकट्ठा रहते थे।
भारत में क्रिकेट लोगों के दिल मे बसने लगा था। यह तब हुआ जब 25 जून 1983 को लॉर्ड्स में कपिल देव ने पहली बार वर्ल्ड कप की ट्रॉफी उठायी थी। उस वाकये को आज कई दशक बीत गए। अब भारत में क्रिकेट दिल और धड़कन दोनों में बसने लगा है। अगर 1983 में भारत अगर वर्ल्ड कप नही जीतता तब शायद हालात कुछ अलग रहते।
83 World Cup से कुछ महीने पहले भारतीय टीम में जीत का जुनून आने लगा था। उस समय भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज के घर जाकर दो बार के वर्ल्ड कप चैंपियन को हराया था। वहीं से टीम में जीत की लहर दौड़ने लगी। उस मैच में सुनील गावस्कर ने 90 रन बनाए, कपिल देव ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 38 गेंदों में 72 रन बनाए। उस मैच में कपिल देव और बलविंदर संधू की गेंदों ने वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों को रन बनाने का मौका नहीं दिया और मुकाबले को 27 रनों से जीत लिया। वहीं रवि शास्त्री ने उस मैच में 3 विकेट लेकर मुकाबले को जीतने में अहम भूमिका निभाई थी।
83 World Cup का सफर
भारतीय टीम ने 83 World Cup का पहला मुकाबला जीत लिया था। पहले मुकाबले में भारत ने वेस्टइंडीज को 34 रनों से हराया था। दो बार की विश्व विजेता टीम वेस्टइंडीज को भारत ने पहले मुकाबले में हराकर कुछ बड़ा करने की ठान ली थी। उस मैच में यशपाल शर्मा ने 89 रन बनाए और टीम के स्कोर को 262 रनों तक पहुंचाया था।
उसके बाद वेस्टइंडीज जब लक्ष्य का पीछा करने उतरी तो ऐसा लगा ही नहीं कि वो लक्ष्य का पीछा भी कर रही है। वेस्टइंडीज की टीम ने उस मैच में केवल 157 रन ही बना सकी। रोजर बिन्नी और रवि शास्त्री ने इस मुकाबले में 3-3 विकेट लेकर जीत सुनिश्चित कर ली थी। इस जीत के बाद तो मानो टीम इंडिया में परिवर्तन की हवा चलने लगी हो।
पहला मैच जीतने के बाद इंडिया का अगला मुकाबला ज़िम्बाब्वे से था जो उस जमाने में शानदार टीम हुआ करती थी। 11 जून 1983 को दूसरे मुकाबले में भारतीय गेंदबाजों ने ज़िम्बाब्वे को कभी खुल कर खेलने का मौका ही नहीं दिया और उसका नतीजा यह हुआ कि ज़िम्बाब्वे मात्र 151 रन ही बना सकी। मदन लाल ने उस मैच में 3 और रोजर बिन्नी ने 2 विकेट लिए थे।
बल्लेबाजी में संदीप पाटिल ने 50, मोहिंदर अमरनाथ ने 44 रनों का योगदान दिया और मुकाबले को 5 विकेट से जीत लिया। 83 World Cup में किसी ने सोचा नहीं था कि भारतीय टीम लगातार दो मैच जीत जाएगी।
दो मैच जीतने के बाद भारतीय टीम में वह आत्मविश्वास आया था कि इस वर्ल्ड कप में हम कुछ कर सकते हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बुरी तरह हार के बाद भारतीय टीम का विश्वास डगमगा गया। 13 जून 1983 को खेले गए मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया ने पहले खेलते हुए 320 रन बनाकर पहाड़ जैसा लक्ष्य खड़ा कर दिया था। इसके जवाब में भारतीय बल्लेबाज 158 रनों पर ही ढेर हो गए और ऑस्ट्रेलिया ने इस मुकाबले को 162 रनों से जीत लिया।
83 World Cup के चौथे मैच में जब वेस्टइंडीज से मिली मात
ऑस्ट्रेलिया से हार के बाद भारतीय टीम को अगले मैच में वेस्टइंडीज से भी मात खानी पड़ी। दो बार की वर्ल्ड कप चैंपियन को पहले मैच में हराने के बाद 15 जून 1983 को वेस्टइंडीज ने शानदार वापसी की और विवियन रिचर्ड्स ने इस मुकाबले में शतक बनाया। वेस्टइंडीज ने उस मैच में 282 रन बनाए थे।
भारतीय टीम 216 रन बनाकर आउट हो गयी। इस मैच में ये अच्छी बात रही कि मोहिंदर अमरनाथ ने 80 रन की पारी खेली। दो मैच हारने के बाद टीम इंडिया का मनोबल फिर से टूटने लगा था। अगर टीम इंडिया अगला मुकाबला हारती तो वो 83 World Cup से बाहर हो जाती।
ज़िम्बाब्वे के साथ 18 जून 1983 को मैच खेला गया था। इस मुकाबले में कई ऐसे रिकॉर्ड बने जो आज भी लोगों को याद हैं। कपिल देव ने इस मैच में ऐसी पारी खेली थी कि वर्ल्ड कप को लगभग 40 साल होने को हैं फिर भी सबको यह पारी बखूबी याद है। याद भी क्यों न हो यही तो पारी थी जिसने भारतीय टीम में वो जुनून पैदा किया कि इस वर्ल्ड कप को किसी भी तरह से यादगार बनाना है।
कपिल देव की इसी पारी ने पूरी टीम में ऊर्जा का संचार कर दिया और टीम पहले से ज्यादा एकजुट होकर खेलने लगी। 18 जून 1983 को कपिल देव ने ज़िम्बाब्वे के खिलाफ 175 रनों की पारी खेली थी। यह पारी तब खेली गई जब टीम इंडिया का टॉप आर्डर मात्र 9 रनों के अंदर ही ध्वस्त हो चुका था। उसके बाद कपिल देव ने जो पारी खेली वो सबके मन में गहरी छाप छोड़ गई। कपिल देव के 175 रन की बदौलत भारतीय टीम ने 266 रन बनाए। उसके बाद ज़िम्बाब्वे को 235 रनों पर समेट कर मुकाबले को 31 रनों से जीत लिया। इस जीत के बाद भारत का 83 World Cup में नया सफर शुरू हुआ।
जिम्बाब्वे को हराने के बाद भारतीय टीम अब ऑस्ट्रेलिया का सामना करने वाली थी। ऑस्ट्रेलिया ने पिछले मुकाबले में भारत को 162 रनों से हराया था। 20 जून 1983 को खेले गए मुकाबले में भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले खेलते हुए 247 रन बनाए। इस लक्ष्य का पीछा करने उतरी ऑस्ट्रेलिया की टीम रोजर बिन्नी और मदन लाल के आक्रमण से लक्ष्य तक पहुंचने का सोच भी नहीं सकी और भारत ने यह मुकाबला जीतकर 83 World Cup के सेमीफाइनल में प्रवेश किया। भारत ने यह मुकाबला 118 रनों से जीत लिया था।
अब बारी थी 83 World Cup के सेमीफाइनल की। किसी ने सोचा नहीं था कि भारतीय टीम सेमीफाइनल में भी पहुंचेगी। क्रिकेट के पंडितों ने कहा था कि भारतीय टीम तो छुट्टी मनाने गयी है लेकिन पंडितों की भविष्यवाणी धरी की धरी रह गयी।
83 World Cup का पहला सेमीफाइनल मुकाबला 22 जून 1983 को खेला गया। यह सेमीफाइनल मुकाबला इंग्लैंड और इंडिया के बीच खेला गया था। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 213 रन बनाए। इंडिया को फाइनल में पहुंचने के लिए 214 रनों की जरूरत थी। मोहिंदर अमरनाथ, यशपाल शर्मा और संदीप पाटिल ने मोर्चा संभाला और टीम को जीत दिलाई। भारतीय टीम ने इस मुकाबले को 6 विकेट से जीतकर फाइनल में जगह बनाई।
इस मैच के हीरो रहे मोहिंदर अमरनाथ जिन्होंने 2 विकेट लेकर और 46 रन बनाकर जीत में बड़ी भूमिका निभाई। फाइनल में पहुंचना उस समय चमत्कार से कम नहीं था। किसी को यकीन नहीं हो पा रहा था कि सच मे भारतीय टीम 1983 वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंच गई है।
फाइनल में भारतीय टीम का सामना दो बार के विश्व कप चैंपियन से होना था। 25 जून 1983 को लॉर्ड्स के मैदान में जब फाइनल खेला गया तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारतीय टीम विश्व विजेता बन जाएगी। पहली पारी के दौरान ऐसा लगा भी नहीं था कि भारतीय टीम इस मुकाबले को जीतने के बारे में सोच भी रही है।
भारत ने उस मैच में श्रीकांत के 38 रनों की बदौलत किसी तरह 183 रन बनाए। यहां तक ऐसा लग रहा था कि वेस्टइंडीज तीसरी बार भी चैंपियन होने जा रही है लेकिन तब ही भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को पहला झटका दे दिया। उसके बाद भारतीय टीम ने अपना शिकंजा कसना शुरू किया।
इसी मैच में कपिल देव ने पीछे भागते हुए विव रिचर्ड्स का कैच पकड़ा और वहीं से मैच भारत के पक्ष में आने लगा। वेस्टइंडीज के लिए विव रिचर्ड्स ने सबसे ज्यादा 33 रन बनाए। इस मुकाबले में अमरनाथ और मदन लाल ने जीत में अहम भूमिका निभाई। दोनों ने 3-3 विकेट लेकर भारत की जीत को सुनिश्चित करने में बड़ा योगदान दिया। मोहिंदर अमरनाथ को इस मैच में भी मैन ऑफ द मैच दिया गया।
जब भारतीय टीम ने मुकाबले को जीता तो शुरू में किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है। एक अंडरडॉग टीम ने दो बार के विश्व कप चैंपियन को हरा दिया। उसके कुछ घंटों बाद जब कपिल देव ने ट्रॉफी उठाई तब जाकर सबको यकीन हुआ कि भारत की टीम विश्व चैंपियन बन गई है। उसके बाद का नजारा ही बदल गया। हर तरफ भारत की चर्चा होने लगी।
इस जीत के बाद भारत के लोगों में क्रिकेट को लेकर नई दीवानगी आ गई। उसके बाद भारत में हर जगह क्रिकेट के चर्चे शुरू हो गए। 1983 के बाद भारत ने अगला विश्व कप 2007 में जीता था। जो टी20 विश्व कप था। इस टीम की तुलना में 1983 की टीम उतनी ज्यादा मजबूत नहीं थी। 2007 के टी20 विश्व कप में भारतीय टीम के पास वो क्षमता थी कि वो ट्रॉफी जीतने के लिए काफी थी। कम अनुभव के बावजूद 2007 में टीम बहुत हद तक संतुलित थी।
इस विश्वकप के बाद आईपीएल के आने से क्रिकेट पूरी तरह से बदल गया। 2008 में IPL का ऐसा आगाज रहा कि हर कोई चकाचौंध हो गया। उसके बाद भारतीय टीम एक-एक करके सब ऊंचाइयों को छूती रही और आज भारतीय टीम ऐसी हो गई कि कहीं भी जाकर अपना परचम लहरा सकती है।
1983 के विश्व कप के बाद भारतीय टीम में धीरे-धीरे सुधार होना शुरू हुआ जिसका परिणाम अभी देखने को मिलता है। चाहे टेस्ट हो या वनडे या सबसे छोटा फॉर्मेट टी20 सभी में भारतीय टीम ने अपना वर्चस्व हासिल कर लिया है। भारत में क्रिकेट की उन्नति 1983 विश्व कप के बाद ही शुरू हुई। 1983 से पहले भारत ने कभी उस उंचाई को नहीं छुआ था। आज विश्व क्रिकेट में BCCI का दबदबा है। ये सब 1983 विश्व कप का ही नतीजा है कि भारतीय टीम आज इस मुकाम पर है।
(लेखक: उज्जवल कुमार सिन्हा खेल पत्रकार हैं। क्रिकेट सहित अन्य मुद्दों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। इन्होंने पत्रकारिता के साथ-साथ खेल के मैदान पर भी नाम कमाया है।)
(डिस्क्लेमर :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति APN न्यूज उत्तरदायी नहीं है.)
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