Shri Ram:श्रीराम और हनुमान जी का नाता है अनोखा, जानिए कैसे श्री रामचंद्र ने स्‍वर्गारोहण से पूर्व हनुमान जी को भेजा नागलोक ?

Shri Ram: श्रीराम और हनुमान से जुड़ी एक कथा भगवान श्रीराम के स्वर्गारोहण की है। मान्यता है कि बजरंगबली को यदि इस बात का जरा भी अहसास हो जाता कि कालदेव विष्णु लोक से श्री राम को लेने के लिए अयोध्या आने वाले हैं तो वह उनको अयोध्या की सीमा में आने भी नहीं देते।

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Shri Ram: जहां भगवान श्रीराम का नाम हो वहां हनुमान जी महाराज न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता। भगवान नारायण के अवतार और त्रेतायुग में लोगों को तारने के लिए श्रीराम ने कई बड़े काम किए।इसी क्रम में भगवान श्रीरामचंद्र जी का पल-पल साथ निभाने के लिए हनुमान जी महाराज ने बड़ी भूमि‍का निभाई। यही वजह है कि आज भी ये मान्‍यता है कि जहां प्रभु श्रीराम को याद किया जाएगा, वहां हनुमान जी स्‍वयं उपस्थित होंगे।

श्रीराम से जुड़ने के बाद हनुमानजी ने उनका हर कदम पर साथ दिया और उनके साथ साए की तरह रहे थे।लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब प्रभु श्रीराम जी ने स्‍वर्गारोहण किया। इस दौरान उनके साथ हनुमान जी नहीं थे।श्रीराम उन्‍हें जानबूझकर वहां लेकर नहीं जाना चाहते थे। आइए जानते हैं पूरा प्रसंग।

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Shri Ram: जानिए कैसे हनुमान जी को भेजा नागलोक?

Shri Ram: प्रभु श्रीराम ने हनुमानजी को मुख्य द्वार से दूर रखने का एक तरीका निकाला। प्रभु श्रीराम ने अपनी एक अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी। इसके बाद हनुमानजी को उसे बाहर निकालने का आदेश दिया। हनुमानजी ने श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए तुरंत लघु रूप धारण किया और दरार में अंगूठी को खोजने के लिए प्रवेश कर गए।

Shri Ram: हनुमानजी पहुंचे नागलोक

Shri Ram ji and Hanu
Shri Hanuman ji.

जैसे ही हनुमानजी ने उस दरार के अंदर प्रवेश किया ,तब उन्‍हें पता चला कि यह कोई सामान्य दरार नहीं बल्कि एक विशाल सुरंग है। वह उस सुरंग में जाकर नागों के राजा वासुकि से मिले। राजा वासुकि हनुमानजी को नाग-लोक के मध्य क्षेत्र में ले गए। वहां पर अंगूठियों से भरा एक विशाल पहाड़ दिखाते हुए बोले कि यहां आपको आपकी अंगूठी मिल जाएगी। उस अंगुठियों के पर्वत को देख हनुमानजी परेशान हो गए और सोचने लगे कि इस विशाल पहाड़ में से श्री राम की अंगूठी खोजना तो कूड़े के ढेर से सुई खोजने के समान है।

लेकिन जैसे ही बजरंगबली ने पहली अंगूठी उठाई तो वह श्री राम की ही थी। लेकिन उनको आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने दूसरी अंगूठी उठाई, क्योंकि वह भी भगवान श्रीराम की ही थी। यह देख हनुमानजी को समझ नही आया कि उनके साथ .यह क्या हो रहा है। हनुमानजी की दुविधा देखकर वासुकि मुस्कुराए और उन्हें कुछ समझाने लगे।

Shri Ram: राजा वासुकि ने दिया ज्ञान

Shri Ram: वासुकी बोले कि पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है, उसे एक दिन वापस लौटना ही पड़ता है। उसके इस लोक से वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। ठीक इसी तरह भगवान श्रीराम भी पृथ्वी लोक को छोड़ एक दिन विष्णु लोक वापस आवश्य जाएंगे। वासुकि की यह बात सुनकर भगवान हनुमान को यह समझने में देर नहीं लगी कि उनका अंगूठी ढूंढ़ने के लिए आना और उसके बाद नाग-लोक पहुंचना, यह सब श्री राम का ही सोचा-समझा निर्णय था।

बजरंगबली को इस बात का पता चल गया कि अंगूठी के बहाने उन्‍हें नागलोक भेजना कर्तव्य से भटकाना मात्र था। ताकि कालदेव अयोध्या में प्रवेश कर सकें और श्रीराम को उनके पृथ्वी पर जीवन की समाप्ति की सूचना दे सकें। हनुमान जी को यह भी अहसास हो गया कि जब वो अयोध्या लौटेंगे तो श्रीराम नहीं होंगे।

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