Jagjivan Ram जिन्हें लोग बाबू जगजीवन के नाम से भी जानते हैं भारत के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता की आज यानी 5 अप्रैल को जयंती मनाई जा रही है। उनको दलितों का मसीहा भी माना जाता है। इन्होंने बचपन से ही दलित समाज के साथ होने वाले भेदभाव का विरोध किया था। 1946 में यह पंडित नेहरू के प्रोविजनल कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री बनकर उभरे थे।
Jagjivan Ram का शुरूआती जीवन
Jagjivan Ram का जन्म 5 अप्रैल, 1908 में बिहार के आरा जिला में एक दलित परिवार में हुआ था। शुरू से ही उनको समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ा। इन्होंने अपनी शिक्षा 1914 से शुरू की और 1922 में इनका दाखिला एक कॉलेज में हुआ। यहां उनके जीवन में परिवर्तन 1927 में आया जब Hindu Banaras University के संस्थापक मदन मोहन मालवीय पहली बार इनके कॉलेज में आए। पंडित मालवीय इनसे काफी प्रभावित हुए और उनको अपने कॉलेज में दाखिला लेने का मौका दिया। इसके बाद 1931 में इन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से B.Sc की डिग्री हासिल की।
बचपन से हुए छुआछूत और समाजिक भेदभाव के शिकार
बाबू जगजीवन राम को दलित परिवार में जन्मे होने के कारण शुरू से ही छूआछुत और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। सबसे पहले इन्होंने भेदभाव का विरोध अपने स्कूल में किया जहां दलित बच्चों के लिए अलग पानी का मटका रखा गया था। इन्होंने विरोध करते हुए वहां अलग रखे पानी के मटके को तोड़ दिया और तब तक विरोध किया जब तक उनकी बात स्वीकार नहीं की गई।
यह भेदभाव का सिलसिला यहीं नहीं रुका, इसके बाद जब उन्होंने बनारस यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया तो वहां पर भी एक नाई ने उनके बाल काटने से इंकार कर दिया क्योंकि यह दलित थे। यहां पर इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और अंत में यह यूनिवर्सिटी छोड़कर कोलकाता यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए चले गए।
संभाल चुके हैं कई राजनीतिक पद
उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1931 में हुई, जब उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई थी। इसके बाद Jagjivan Ram 1946 में जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। जगजीवन राम 30 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे।
जगजीवन राम ने 1937 से 1975 तक कांग्रेस में कई अहम दायित्वों का निर्वाह किया। बाबू जगजीवन राम उप-प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री व सूचना-प्रसारण मंत्री जैसे कई बड़े पदों पर रह चुके हैं। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध व बांग्लादेश के निर्माण के वक्त जगजीवन राम देश के रक्षा मंत्री थे और देश में हुए हरित क्रांति के समय भी वह देश के कृषि मंत्री थे।
आपातकाल के बाद बनाई नई पार्टी
कांग्रेस से मिली निराशा के बाद Jagjivan Ram ने हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ मिलकर एक नई पार्टी “Congress For Democracy” बनाई। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की लेकिन उस समय भी उनको प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया और नाराज होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के शपथग्रहण समारोह में भी हिस्सा नहीं लिया। लेकिन उनको बाद में उप-प्रधानमंत्री का कार्यभार दिया गया।
बेटे की तस्वीर ने खत्म किया राजनीतिक जीवन
1978 में Jagjivan Ram को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया लेकिन उसी समय “सूर्या” मैगजीन में उनके बेटे की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीर लोगों के बीच फैल गई जिसने उनके राजनीतिक जीवन पर एक पूर्ण-विराम लगा दिया।
प्रधानमंत्री बनने का सपना रहा अधूरा
Jagjivan Ram का प्रधानमंत्री बनने का सपना हमेशा से ही अधूरा रह गया था। 1980 में एक बार फिर उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया था लेकिन इंदिरा गांधी की सत्ता वापसी से उनका सपना एक बार और टूट गया। हालांकि, वे पार्टी को एक बार फिर शामिल हुए लेकिन प्रधानमत्री पद हासिल न कर पाए।
बेटी संभाल रही हैं राजनीतिक विरासत
Jagjivan Ram ने 1936 से 1986 तक बिहार के सासाराम के सांसद का पद सम्भाले रखा और इसके बाद 6 जुलाई, 1986 में अपने कार्यकाल में ही उनका देहांत हो गया। अब उनकी विरासत उनकी बेटी मीरा कुमार संभाल रही हैं। यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के दौरान वे लोकसभा अध्यक्ष रहीं। वहीं, कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया था।
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