दिल्ली में सीलिंग और अवैध निर्माण के मामला पर सुप्रीम कोर्ट सख्त रुख अपनाए हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में 2 अप्रैल से रोजाना सुनवाई करेगा। गुरुवार (15 फरवरी) को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अब ये तय किया जाना जरूरी है कि सीलिंग और अवैध निर्माण के लिए 2006 में लाया गया स्पेशल प्रोविशन एक्ट वैध है या नहीं साथ ही उसमें 2006 से 2017 तक लाये गए संशोधन वैध है या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी रंजीत कुमार को 2006 के स्पेशल प्रोविशन एक्ट और उसमें किए गए संशोधन को कोर्ट में पेश करने को कहा है।

पिछली सुनवाई में सीलिंग से बचाव के लिए मास्टर प्लान-2021 में बदलाव के प्रस्तावों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए और दिल्ली के नगर निगमों पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि आप आंखें मूंदे बैठे हैं और किसी हादसे का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा थी कि आपने उपहार सिनेमा अग्निकांड, बवाना और कमला मिल्स जैसी घटनाओं से भी कोई सबक नहीं लिया है। ऐसा लगता है कि DDA दबाव के आगे झुक रहा है…कोर्ट ने 2021 के मास्टर प्लान में संशोधन के प्रस्ताव पर भी DDA से कहा था को आपको इस बारे में जनता का पक्ष भी सुनना होगा।

सीलिंग से निजात दिलाने के लिए DDA बोर्ड ने मास्टर प्लान में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया है। पारित प्रस्ताव में फ्लोर एरिया रेशियो बढ़ाना, कनवर्जन चार्ज को 10 गुना से घटाकर दो गुना करना और 12 मीटर चौड़ी सड़कों पर अनाज गोदामों को नियमित करना शामिल है। इस संशोधन पर जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने सवाल किया था कि दिल्ली में रहने वाली जनता का इस बारे में क्या कहना है? आप सिर्फ कुछ लोगों को सुनकर ही फैसला नहीं ले सकते। बेंच ने दिल्ली में अब भी हो रहे अवैध निर्माणों का जिक्र किया था और सवाल किया था कि आप दिल्ली की जनता के हितों का ध्यान रख रहे हैं या नहीं? कोर्ट ने कहा कि दिल्ली वेस्ट मैनेजमेंट, प्रदूषण और पार्किंग जैसी अनेक समस्याओं से जूझ रही है।

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