धारा 377 की सवैधानिकता को चुनौती देने के मामले में गुरुवार (12 जुलाई) को तीसरे दिन भी संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई हुई। सुनवाई को दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने कहा कि भले ही केंद्र ने इस मुद्दे को हम पर छोड़ दिया है लेकिन हम 377 की संवैधानिकता पर विस्तृत विश्लेषण करेंगे। केंद्र के किसी मुद्दे को खुला छोड़ देने का मतलब यह नहीं है कि उसे न्यायिक पैमाने पर देखा नहीं जाएगा। मामले पर सुनवाई 17 जुलाई को जारी रहेगी।

समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने वाली IPC की धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई के दौरान दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, जस्टिस चन्दचूड़ ने कई ऐसी टिप्पणी की जिससे कोर्ट का रुख समलैंगिको के पक्ष में नजर आ रहा है।

जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि LGBT समुदाय समाजिक पूर्वाग्रहों के चलते मेडिकल सहायता से परहेज करता है। सामाजिक, परिवारिक दबाव के कारण समलैंगिक विपरीत लिंग के साथ शादी करने को मजबूर होते हैं जो बाई सेक्सुअलिटी और दूसरी मानसिक परेशानियों की वजह बनती है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के सेक्शन 21 A का उदाहरण दिया जो सेक्सुअल रुझान के आधार पर भेदभाव का विरोध करता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इसका मतलब ये हुआ कि संसद भी इसको मान्यता देती है। हमने ऐसा सामाजिक वातावरण तैयार किया है, जिसके चलते समलैंगिक भेदभाव का शिकार होते हैं अगर धारा 377 खत्म होती है तो यह सामाजिक कलंक भी खत्म हो जाएगा।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पूछा कि क्या देश में कोई वैधानिक प्रवधान है, जहां सेक्सुअल रुझान को मेन्टल डिसऑर्डर माना जाता हो। सेक्सुअल रुझान के साथ अपराध का धब्बा जुड़ा है।

इससे पहले सुनवाई में वकील श्याम दीवान ने कहा कि अब समय आ गया है कि कोर्ट को संविधान के अऩुच्छेद 21 के तहत राइट टू इंटिमेसी को जीवन जीने के अधिकार का हिस्सा घोषित कर देना चाहिए। वहीं 377 के खिलाफ याचिकाओं के खिलाफ सुरेश कुमार कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है। कौशल की याचिका पर ही 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटकर 377 को वैध ठहराया था।

अब संविधान पीठ के सामने अगली सुनवाई मंगलवार (17 जुलाई) को होगी। कोर्ट ने कहा कि धारा 377 के पक्ष और विपक्ष में दलील उसी दिन पूरी हो जाएगी। चीफ जस्टिस ने IPC 377 को अपराध के दायरे से बाहर किये जाने का विरोध कर रहे वकीलों को 90 मिनट के अंदर जिरह पूरी करने को कहा है।

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