सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानूनी तौर पर अलग रह रही पत्नी भी तलाकशुदा पत्नी की तरह गुजारा भत्ते की अधिकारी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि कोई ऐसी वजह नहीं है, जिसके चलते उसे गुजारा भत्ता देने से इंकार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक महिला की याचिका की सुनवाई के दौरान की।
हाईकोर्ट के फैसले को दी चुनौती
दरअसल एक निचली अदालत ने इस महिला के पति को हर महीने 4000 रुपये गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया था लेकिन निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ महिला का पति पटना हाईकोर्ट चला गया। पटना हाईकोर्ट ने पति की याचिका पर सुनवाई की और निचली अदालत के गुज़ारा भत्ता देने के आदेश को रद्द कर दिया। हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि निचली अदालत ने अपने फैसले में कोई ऐसी वजह नहीं बताई जिससे यह साबित हो कि महिला खुद अपनी देखभाल नही कर सकती है। पटना हाईकोर्ट के इस फैसले को महिला ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फैसले को रदद करते हुए, हाई कोर्ट को नए सिरे से इस पर विचार करने को कहा।
सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने बेंच को कहा कि पिछले नौ सालों से उसे कोई पैसा गुज़ारा भत्ता के तौर पर पति से नहीं मिला है इस पर पति की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि कानूनी तौर पर दोनों अलग रह रहे हैं इसलिए गुज़ारा भत्ता देने का मामला कहीं नहीं ठहरता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जा सकता है तो कानूनी तौर पर अलग हुए दंपति को क्यों नहीं। बेंच महिला के पति की ओर से दी गई उन दलीलों पर विचार कर रही थी जिसमें यह कहा गया कि उनकी पत्नी दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)1973 की धारा 125(4) के तहत कानूनी तरीके से अलग हो चुकी है इसलिए वह गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।