न्यायपालिका के इतिहास में ये पहला मौका रहा जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने एक साथ मिल कर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आपसी विवाद को सड़क पर बिखेर दिया।  प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के नंबर दो जस्टिस जे चेलामेश्वर ने कहा, हम चारों इस बात पर सहमत हैं कि इस संस्थान को बचाया नहीं गया तो इस देश में या किसी भी देश में लोकतंत्र ज़िंदा नहीं रह पाएगा। स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका अच्छे लोकतंत्र की निशानी है। इन जजों की ओर से जस्टिस दीपक मिश्रा को चिट्ठी लिखी गई है।

यह है चिट्ठी का मजमून

चीफ जस्टिस उस परंपरा से बाहर जा रहे हैं, जिसके तहत महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय सामूहिक तौर पर लिए जाते रहे हैं।

प्रधान न्यायाधीश केसों के बंटवारे में नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं।

इस कोर्ट ने कई ऐसे न्यायिक आदेश पारित किए हैं, जिनसे प्रधान न्यायाधीश के कामकाज पर असर पड़ा, लेकिन जस्टिस डिलिवरी सिस्टम और हाई कोर्ट की स्वतंत्रता बुरी तरह प्रभावित हुई है।

सिद्धांत यही है कि चीफ जस्टिस के पास रोस्टर बनाने का अधिकार है। वह तय करते हैं कि कौन सा केस इस कोर्ट में कौन देखेगा। यह विशेषाधिकार इसलिए है, ताकि सुप्रीम कोर्ट का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। लेकिन इससे चीफ जस्टिस को उनके साथी जजों पर कानूनी, तथ्यात्मक और उच्चाधिकार नहीं मिल जाता।

इस देश के न्यायशास्त्र में यह स्पष्ट है कि चीफ जस्टिस अन्य जजों में पहले हैं, बाकियों से ज्यादा या कम नहीं।

कई मामले हैं, जिनका देश के लिए खासा महत्व है लेकिन, चीफ जस्टिस ने उन मामलों को तार्किक आधार पर देने की बजाय अपनी पसंद वाली बेंचों को सौंप दिया।

यहां हम मामलों का जिक्र इसलिए नहीं कर रहे हैं, ताकि संस्थान की प्रतिष्ठा को चोट न पहुंचे लेकिन इस वजह से न्यायपालिका की छवि को नुकसान हो चुका है।

चिट्ठी में सीबीआई के जज लोया के मामले का भी जिक्र है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने भी कहा कि प्रधान न्यायाधीश को सुधारात्मक कदम उठाने के लिए मनाने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे प्रयास विफल रहे।

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