बलात्कार और यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों को बिना लिंग भेद के लागू करने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 फरवरी) को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह कानून महिलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। अगर पुरुषों के लिए कानून में बदलाव ज़रूरी है, तो इसे देखना संसद का काम है, कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि ऐसे मामलों में अगर पुरुष के साथ महिला ने अपराध किया है तो उनके खिलाफ भी केस चलना चाहिए, लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) के प्रावधान के मुताबिक रेप और छेड़छाड़ मामले में आरोपी पुरुष ही हो सकते हैं और महिलाएं पीड़ित, लेकिन यह संविधान के प्रावधान के विरुध है।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि रेप और छेड़छाड़ में लिंग भेद नहीं हो सकता। क्योंकि महिलाएं भी ऐसा अपराध कर सकती हैं। ऐसे में IPC की धारा-375 यानी रेप और धारा-354 यानी छेड़छाड़ के मामले में किसी के खिलाफ भी केस दर्ज किया जाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि संविधान का अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 के मुताबिक किसी के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता। लेकिन IPC की धारा-375 के तहत सिर्फ पुरुषों के खिलाफ केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है जबकि महिलाओं को यहां पीड़ित माना गया है। अपराध कोई भी कर सकता है ऐसे में महिलाओं के खिलाफ भी केस दर्ज करने का प्रावधान होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह धाराएं महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए बनाई गई हैं और अगर कानून में कोई बदलाव होना है तो वह काम संसद का है।

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