जब PM CARES को ही नहीं है पारदर्शिता की Care

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PM CARES Poster
PM CARES Poster : पादर्शिता पर उठे सवाल

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बार फिर से PM Care Fund को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने से साफ इनकार कर दिया है। इस मामले में सरकार की ओर से आश्चर्यजनक दलील दी गई है कि चूंकि यह सरकारी संस्थान न होकर एक पब्लिक चैरेटेबल ट्रस्ट है, इसलिए यह सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत नहीं आता है।

सरकार की ओर से दी जा रही यह दलील निश्चित तौर पर पारदर्शिता के लिए घातक है, जो इसी 12 अक्टूबर 2021 को अपना 17वां जन्मदिन मनाएगा यानी जिसे हम “सूचना अधिकार दिवस” कहते हैं। इस मामले में सम्यक अग्रवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा पीएम केयर को लेकर डाली गई उनकी आईटीआई को धारा 2(H) के जरिये रद्द किये जाने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

क्या है पब्लिक ट्रस्ट की परिभाषा

धारा 2(एच) सार्वजनिक प्राधिकरण को परिभाषित करती है। जिसके मुताबिक एक सार्वजनिक प्राधिकरण या निकाय का अर्थ यह होता है कि उसका संविधान द्वारा या संसद के द्वारा बनाए गए किसी कानून के द्वारा या फिर राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश के जरिये संचालन होता है और इसमें स्वामित्व, नियंत्रण या वित्तपोषिण निकाय या गैर-सरकारी संगठन सरकार द्वारा प्रदान की गई धन के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित होते हैं।

लेकिन चूंकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पीएम केयर्स फंड के मैनेजिंग ट्रस्टी है। इसलिए उनकी जवाबदेही बनती है कि इसे पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। अगर यह मोदी केयर फंड होता तो शायद यह बात उस पर लागू नहीं होती। पीएम केयर को मिलने वाले दान में सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का धन भी शामिल है। इसलिए भी उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बनता है क्योंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए इसे नियंत्रित कर रहे हैं।

पीएमओ क्यों नहीं दे रहा है पीएम केयर की जानकारी

आखिर क्यों पीएम केयर को लेकर पीएमओ में डाली गई आरटीआई को खारिज कर दी गई जबकि सरकारी नियमों के तहत पीएमओ को इस आरटीआई को रिजेक्ट करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। पीएमओ एक सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित है और यही कारण है कि पीएम केयर के बारे में पूरी जानकारी इसके पास में है।

भले ही कुछ जानकारी आईटीआई के तहत नहीं दी सकती हो, लेकिन पीएमओ पीएम केयर्स के बारे अन्य दूसरी जानकारी देने से साफ मना नहीं कर सकता है। यहां तक ​​कि पीएम केयर्स का ट्रस्ट भी पीएमओ के नियंत्रण में है, इसलिए आरटीआई की धारा 8 के तहत कुछ अपवादों को छोड़कर पीएम केयर्स के बारे में अधिकांश जानकारी स्वेच्छा से प्रकाशित की जानी चाहिए।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने एक आरटीआई के जवाब में कहा कि भारत के संसद की भावना के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय आरटीआई को जानबूझकर अनदेखा नहीं कर सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट में भारत सरकार के अवर सचिव के द्वारा पीएम केयर को लेकर दायर किये गये एक हलफनामे में शामिल केंद्र सरकार के जो भी दावे किये गये हैं वह पूरी तरह से अवैध और गलत प्रतीत होते हैं।

दावा नंबर 1: केंद्र सरकार का कहना है कि पीएम केयर न तो भारत के संविधान द्वारा बनाया गया है और न ही उसके किसी क़ानून के द्वारा।

जबकि पीएम केयर फंड पीएमओ की पहल पर बनाया गया, जो कि सार्वजनिक प्राधिकरण और संवैधानिक कार्यालय है और पीएमओ का एक विंग विशेषतौर पर कोरोनो वायरस कोविड-19 की महामारी का सामना करने के लिए पूरे देश में प्रबंधन का कार्य देख रहा है। इसका मतलब साफ है कि पीएमओ से पीएम केयर को अलग करके नहीं देखा जा सकता है। इसके अलावा पीएम केयर ट्रस्ट का जिक्र प्रधानमंत्री की आधिकारिक वेबसाइट पर भी किया गया है और भारत सरकार का राजकीय चिन्ह “शेर” का भी प्रयोग इस ट्रस्ट के लिए किया गया है। इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पीएमओ से पीएम केयर का कोई संबंध नहीं है।

दावा नंबर 2: पीएम केयर से प्राप्त धनराशि भारत की संचित निधि में नहीं जाती है।

यही कारण है कि पीएमओ इस मामले में पूरी तरह से जनता के प्रति जवाबदेह है कि पीएम केयर में आने वाला धन कहां और किस मद में खर्च होता है.

दावा नंबर 3: पीएम केयर ट्रस्ट पर न तो केंद्र सरकार और न ही किसी राज्य सरकार का कोई नियंत्रण है। यह ट्रस्ट किसी प्रकार से किसी राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधीन नहीं है साथ ही किसी भी तरह की वित्तीय सहभागिता भी नहीं है। अगर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र या राज्य सरकारों का पीएम केयर पर न तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर कोई नियंत्रण है और न ही इसके कार्यप्रणाली पर कोई हस्तक्षेप है।

पीएमओ के इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि पीएम केयर पूरी तरह से पीएमओ के नियंत्रण में आता है। प्रधानमंत्री केंद्र सरकार के प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पीएम केयर ट्रस्ट के चेयरमैन हैं, जबकि रक्षा, गृह और वित्त मंत्री इस ट्रस्ट के सदस्य हैं। यही नहीं पीएम केयर के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस ट्रस्ट में दान करने की अपील करते हैं। पीएम केयर के विज्ञापन की पहली पंक्ति में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नए फंड की घोषणा करते हैं और जनता से अपील करते हैं कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पीएम केयर में धनराशी का दान करें। यह बड़ी आश्चर्यजनक बात है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए पीएम केयर ट्रस्ट के चेयरपर्सन बने हुए हैं। जबकि सरकार का कहना है कि इस ट्रस्ट से सरकार का कोई मतलब नहीं है तो उस स्थिति में तो पीएम केयर के चेयरमैन का पद लाभ के पद के तौर पर देखा जाएगा और उस स्थिति में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद पर अयोग्य माने जाएंगे। इसके अलावा यह भी सच है कि पीएम केयर के लिए GOV.IN डोमेन का प्रयोग हो रहा है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह पीएम केयर सरकार से जुड़ा हुआ ट्रस्ट है।

दावा नंबर 4: पीएम केयर ट्रस्ट के गठन में कहीं भी नहीं लिखा है कि इसके सदस्य सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति नहीं हो सकते हैं

यह दावा पूरी तरह से बेमानी है क्योंकि बोर्ड की बनावट जनभागीदारी से तय होती है और अगर इस ट्रस्ट को किसी राजनैतिक दल के प्रमुख, उनके समर्थक या किसी सेवानिवृत अधिकारी के द्वारा संचालित किया जाता तो इस तर्क को माना भी जा सकता है।

पीएम केयर की वेबसाइट में आधिकारिक तौर पर यह कहा गया है कि प्रधानमंत्री ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष हैं और रक्षा, गृह, वित्त मत्रालय के मंत्री भी पदेन सदस्य की हैसियत से इस ट्रस्ट से जुड़े हैं। पदेन अध्यक्ष का मतलब है कि नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत तौर नहीं बल्कि बतौर प्रधानमंत्री चेयरमैन के पद पर हैं और ठीक उसा तरह अन्य मंत्री भी उसी दायरे में बतौर सदस्य शामिल हैं। इसका साफ मतलब है कि जब प्रधानमंत्री और उनका दफ्तर जब इस ट्रस्ट को चला रहे हैं तो यह स्वतः सार्वजनिक प्राधिकरण के दायरे में आ जाता है। अगर यह भी मान लिया जाए कि सरकार इस ट्रस्ट के फंड को नियंत्रित नहीं कर रही है लेकिन आंशिक तौर पर जरूर यह सरकार के नियंत्रण में है और यह इस बात के लिए काफी है कि पीएम केयर एक सार्वजनिक प्राधिकार में है। यदि पीएम केयर ट्रस्ट के विषय में प्रधानमंत्री, पीएमओ और उनके तीनों मंत्री इसके फंड के संचालन में कोई भूमिका अदा करते हैं तो वह कहीं से भी व्यक्तिगत नहीं माना जा सकता है। यह पीएम, पीएमओ और तीनों मंत्रियों के आधिकारिक कार्यों में शुमार किया जाएगा।

दावा नंबर 5: पीएम केयर में व्यक्तिगत या संस्थानों के स्वैछिक दान का सरकार से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। पीएम केयर में किये गये सभी दान स्वेछा से किये गये हैं और सरकार इस मामले में कहीं नहीं है।

यह दावा पूरी तरह से असत्य है। भारत की 38 सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने कुल 2015 करोड़ रूपये की धनराशि पीएम केयर में दान की है। अगर पीएम केयर फंड की पारदर्शिता को लेकर दावा किया जा रहा है तो ट्रस्ट को बताना चाहिए कि किसने औऱ कितनी धनराशि इस ट्रस्ट को दान दी। लेकिन ट्रस्ट ऐसा करने से साफ इनकार कर चुका है।

(लेखक- प्रो. श्रीधर आचार्यलू, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त एवं डीन, स्कूल ऑफ लॉ, महिन्द्रा यूनिवर्सिटी, हैदराबाद)

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