ओडिशा में अवैध माइनिंग के मामला में एस्सल ग्रुप की अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। एस्सल ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट से माइनिंग की इजाजत मांगी थी। ग्रुप का कहना था कि माइनिंग के लिए कोर्ट से लगाई गई जुर्माने की राशि की किश्त कंपनी जमा कर चुकी है इसलिए उसे माइनिंग की इजाजत दी जानी चाहिए। लेकिन कोर्ट ने फिलहाल अर्जी को खारिज कर दिया।
दरअसल अवैध माइनिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने माइनिंग कंपनियों पर कुल 2800 करोड़ का जुर्माना लगाया है और जो कंपनिया 31 दिसम्बर तक जुर्माने की राशी जमा नहीं करेंगी उन्हें माइनिंग की इजाजत नही होगी। अभी तक फारेस्ट के लिए 1800 करोड़ जमा किए जा चुके हैं। लेकिन पर्यावरण के लिए 1000 करोड़ देना अभी बाकी है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में आदोश दिया था कि ओड़िशा में बिना पर्यावरण मंजूरी के चल रही खनन कंपनियों को 2000-01 से अवैध रुप से निकाले गये लौह और मैंगनीज़ अयस्क के मूल्य पर 100 फिसदी जुर्माना राज्य सरकार को देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार को पर्यावरण, जंगल, प्रदूषण नियंत्रण कानूनों और खनन योजनाओं के तहत सीमा से अधिक निकाले गए सभी खनिजों की कीमत को इन कंपनियों से वसूलने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना पर्यावरण या वन मंजूरी के या दोनों तरह की मंजूरियों के बिना खुदाई कर निकाले गये खनिज पर खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 की धारा 21 (5) लागू होगी और अवैध ढंग से निकाले गये खनिज के दाम की शत प्रतिशत क्षतिपूर्त खनन लीज़धारक करेंगे। इसमें टाटा स्टील, रूंगटा माइंस, आदित्य बिड़ला कंपनी और एस्सल माइनिंग के नाम भी शामिल हैं।
सेंट्रल इम्पॉवर्ड कमेटी (CEC) की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा में खदान संचालकों ने 2000-01 और 2010-11 में 215.5 मिलियन टन आयरन और मैंगनीज़ ओर का अवैध खनन किया था।
पिछली सुनवाई में जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने रिटायर जज के मार्गदर्शन में एक विशेष समिति बनाने का भी निर्देश दिया था। यह समिति उन तमाम पहलुओं की जांच करेगी जिसकी वजह से यह अवैध खनन हुआ। समिति अवैध माइनिंग को रोकने के उपाय भी सुझाएगी। बेंच ने ऐसी गतिविधियों के कारण पर्यावरण को पहुंचे नुकसान पर चिंता जाहिर की थी और केंद्र सरकार से राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008 पर पुनर्वचिार करने को कहा था।