सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है कि देश के 16 हाईकोर्ट ने हिरासत में होने वाली मौतों के मामलों से निपटने के लिए अपने स्तर पर याचिकाएं शुरु की हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितंबर को सभी हाईकोर्ट से कहा था कि वह ऐसे कैदियों के परिजनों की पहचान करने के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए याचिका दायर करें जिनकी 2012 के बाद हिरासत में अप्राकृतिक मौत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों में अगर पहले से ही मुआवज़ा नहीं दिया गया है तो उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकूर और दीपक गुप्ता की बेंच को सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने बताया कि कलकत्ता, गुजरात, राजस्थान और मद्रास के हाईकोर्ट सहित आठ हाईकोर्ट ने इस बारे में फिलहाल कोई भी सूचना नहीं दी है कि हिरासत में होने वाली मौतों के संबंध में कार्रवाई की गई है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में 1382 जेलों में अमानवीय हालात से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए, अपने सेक्रेटरी जनरल से इन आठ उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क करने को कहा ताकि जल्द से जल्द हिरासत में होने वाली मौतों के मामले पर विचार किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने15 सितंबर को कहा था कि हिरासत की मौत एक अपराध है और इस तरह की घटनाओं से राज्य द्वारा कैदियों की जिंदगी और स्वतंत्रता के बारे में स्पष्ट तिरस्कार के रवैये के संकेत मिलते हैं। कोर्ट ने देशभर की जेलों में अप्राकृतिक मौतों और जेल सुधारों पर कई तरह के दिशा निर्देश भी दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों के साथ फरवरी 2018 के पहले हफ्ते में बैठक करे और ओपन प्रिज़न यानी खुली जेल बनाने को लेकर चर्चा करें।

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार की आलोचना की थी कि वह ऐसे विचाराधीन बंदियो को भी जेल से रिहाई नहीं दे रही हैं जिन्हें छोड़ा जा सकता है। जेलों में क्षमता से ज़यादा कैदी मैजूद हैं इसके बावजूद छूटने योग्य कैदियों को रिहा नहीं किया जाता। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर राज्य सरकारों को नोटिस भी जारी किया था।

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