गुरुवार (11 जनवरी) को दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने सरकार द्वारा धार्मिक चिन्हों वाले सिक्कों को जारी करने के मामले में कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पीठ ने कहा कि यह संविधान के खिलाफ नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की यह दलील कि सरकार का ऐसा करना देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर कलंक है, सही नही है। कोर्ट ने कहा कि सेक्युलरिज्म यह नहीं सिखाता कि किसी उत्सव को मनाने के लिए आप सिक्के नहीं जारी करेंगे। ऐसा करना किसी के साथ पक्षपात नहीं है और सिक्का निर्माण अधिनियम 2011 के तहत सरकार को ऐसा करने का अधिकार है। धर्मनिरपेक्षता यह नहीं कहती है कि आप किसी आयोजन को मनाने के लिए सिक्के जारी नहीं कर सकते हैं।
बेंच ने स्मारक सिक्के का अर्थ पूछा जिस पर भारत सरकार की तरफ से कहा गया कि इसे सिक्का अधिनियम, 2011 की धारा 2 (बी) में परिभाषित किया गया है। जिसमें सरकार या उसके द्वारा अधिकृत कोई संस्था किसी खास मौके पर या घटना को मनाने के लिए इस तरह के सिक्के जारी कर सकती है।
याचिकाकर्ता नाफिस काजी ने अदालत में याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि सरकार धार्मिक प्रतीकों के साथ सिक्कों को जारी कर रही है जो संविधान के खिलाफ थे और उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। कोर्ट माता वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड की सिल्वर जुबली के उपलक्ष में जारी किए गए सिक्कों के खिलाफ दायर मामले पर सुनवाई कर रहा था। रिजर्व बैंक की ओर से मां वैष्णो देवी की तस्वीर वाले सिक्के जारी किए गए हैं। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सिक्कों को जारी करके सरकार ने किसी तरह का पक्षपात और भेदभाव नहीं किया है।