सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सुनवाई के दौरान वकीलों की ओर से ऊंची आवाज में बहस करने पर देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने नाराज़गी ज़ाहिर की है और सवाल उठाए हैं। अयोध्या मामले और दिल्ली सरकार बनाम एलजी के मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट में वरिष्ठ वकीलों के व्यवहार को लेकर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की है चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि राम जन्मभूमि विवाद सहित दूसरे मामलों में सीनियर वकील ऊंची आवाज में बहस करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा व्यवहार उनकी क्षमता पर सवाल उठाता है कि वो सीनियर एडवोकेट बनाये जाने के काबिल हैं क्या?

पांच दिसंबर को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट राजीव धवन को ऊंची आवाज में न बोलने की बेंच ने नसीहत दी थी। बेंच ने राजीव धवन से कहा था कि आप बहस नहीं कर रहे हैं बल्कि चिल्ला रहे हैं। चीफ जस्टिस ने वकीलों को नसीहत दी कि मामलों की सुनवाई करते वक्त ऊंची आवाज में बहस करना बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि अगर ‘बार’ इस पर संज्ञान लेकर इसे रेगुलेट नहीं करता है तो ‘बेंच’ को इस मामले को देखना पड़ेगा।  दरअसल चीफ जस्टिस ने पारसी महिला का किसी दूसरे धर्म के पुरुष से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के बाद अपने धर्म के अधिकार खो देने के मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को यह टिप्पणी की।

पहले भी लगाई है फटकार

यह पहली बार नहीं है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अदालत के अंदर वकीलों के इस तरह के रवैये पर नाराज़गी ज़ाहिर की है। दिसंबर 2016 में भी नोटबंदी पर मामले की सुनवाई के दौरान वकील अदालत में जोर-जोर से बोल रहे थे उस वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने फटकार लगाते हुए कहा था कि मैं 23 सालों से जज हूं और बहस के दौरान मैने आज तक वकीलों का ऐसा व्यवहार नहीं देखा है, ऐसा लग रहा है मानो यह कोर्ट नहीं बल्कि मछ्ली बाज़ार है।

उस वक्त जस्टिस टीएस ठाकुर ने वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम का उदहारण देते हुए अन्य वकीलों से कहा था कि आप लोग इन से कुछ सिखिए, क्या आपको लगता है कि आप इन से ज़्यादा जानते हैं, आप इन्हें बोलने नहीं दे रहे हैं लेकिन यह फिर भी शांति से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं।

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