आधार की संवैधानिकता और अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मंगलवार (13 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट ने याचिककर्त्ता के वकील से कई सवाल किए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप कह रहे हैं कि पहचान छुपाये रखना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति गुमनाम रहता है तो सरकार द्वारा दिये जाने वाले लाभों का फायदा वो कैसे उठाएगा? संविधान के भाग 4 में नीति निदेशक सिद्धान्त दिए गए हैं जिसमे सरकार का नागरिकों के प्रति दायित्व बताया गया है।

इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या असली व्यक्ति को अगर वर्चुअल व्यक्ति के रूप में तब्दील करते हैं तो क्या उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट ने तब किये जब वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि ये बहुत ही खतरनाक कानून है। व्यक्ति को अपनी पहचान छुपाये रखने का मौलिक अधिकार है उसको इस तरह सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। सुब्रमण्यम ने कहा कि इस आधार सिस्टम ने व्यक्ति को 12 नंबर की संख्याओं में तब्दील कर दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि पहले सरकार लोगो को सब्सिडी का लाभ नही देती थी, उसके पास पंचायत और प्रशासनिक स्तर पर सब आंकड़े थे। उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है यह सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कोर्ट को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए।

दूसरी ओर आज कपिल सिब्बल ने अपनी बहस पूरी कर ली। आधार कानून को गलत ठहराते हुए सिबब्ल ने कहा कि मामले में आने वाला फैसला आजादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण फैसला होगा। जैसे कि ADM जबलपुर के केस में मौलिक अधिकार के एक पहलू की सीमित व्याख्या की  गई थी, जबकि ये मामला असीमित व्याख्या का है।  इसमे मेरी ही नहीं भारत मे आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी तय होगा। यह तय हो जाएगा कि भविष्य की प्रणाली क्या होगी। मामले की सुनवाई 15 फरवरी को भी जारी रहेगी।

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