दिल्ली हाईकोर्ट ने 1995 में दलीप चक्रवर्ती की हिरासत में मौत के मामले में दिल्ली पुलिस के स्पेशल स्टाफ से जुड़े छह पुलिसवालों को 8 साल की सज़ा सुनाई है। इस दौरान हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस से कानून व्यवस्था बनाए रखने की उम्मीद की जाती है, ना की कानून को अपने हाथ में लेने की।

कोर्ट ने इस बात पर दुख ज़ाहिर किया कि दो दशकों में पुलिस हिरासत में हिंसा और मौतों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई है। हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पिछली पांच रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए कहा कि इनके आंकड़े बताते हैं कि पुलिस हिरासत में हुई मौतों की घटनाओं में कोई खास कमी नहीं देखी गई है। लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया द्वारा बदलाव की जो सिफारिशें की गई थीं वह भी लागू नहीं की गई हैं और समस्या जैसी थी वैसी ही बनी हुई है। इस दौरान दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस आईएस मेहता और जस्टिस एस मुरलीधर की बेंच ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, (1997) 1 SCC 416 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र किया जिसमें पुलिस हिरासत में हिंसा के मामलों को रोकने के लिए दिशानिर्देश दिए गए थे।

हांलाकि बेंच ने पुलिसवालों पर लगे हत्या के आरोप को गैरइरादतन हत्या में बदल दिया और उनकी उम्रकैद की सजा को आठ साल की कैद में तबदील कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में यह तो साबित होता है कि आरोपियों के व्यवहार की वजह से ही यह मौत हुई लेकिन अभियोजन पक्ष उन ठोस सबूतों को पेश करने में नाकाम रहा जो यह साबित कर सकें कि मृतक को कौन सी ऐसी घातक चोटें लगीं थी जिससे उसकी मौत हुई।

बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने दलीप चक्रवर्ती नाम के एक शख्स की 1995 में हत्या के जुर्म में दिल्ली पुलिस के स्पेशल स्टाफ के 6 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दलीप चक्रवर्ती की 8 अगस्त, 1995 को हिरासत में हुई पिटाई से हुए जख्मों के चलते मौत हो गई थी। कोर्ट ने कहा था कि आरोपी, मृतक के घर में छापेमारी के लिए गए थे। उन्हें उस के पास अवैध हथियार होने की जानकारी मिली थी पर छापेमारी के दौरान उन्हें उसके पास ऐसा कुछ नहीं मिला।

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