देश की अदालतों में जजों की कमी का सवाल कई बार उठता रहा है और इस वजह से लंबित पड़े मामलों के निपटारे में भी देरी का बात कही जाती रही है। वक्त -वक्त पर कुछ नियुक्तियां होती हैं लेकिन अभी भी हाईकोर्ट में अनेकों पद खाली पड़े हुए हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का इलाहाबाद हाई कोर्ट 2018 में जजों की कमी से जूझने वाला है। 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 जज रिटायर होने जा रहे हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहले ही जजों की कमी है और ऐसी स्थिति में अगर ज़ल्द नियुक्तियां नहीं होती हैं तो हाईकोर्ट पर काम का बोझ और बढ़ जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 160 है लेकिन इन पूरे पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं। वर्तामान में 108 जज इलाहाबाद हाईकोर्ट में हैं और जजों की यह कुल संख्या इलाहाबाद की मुख्य पीठ और लखनऊ पीठ दोनों को मिलाकर है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में आयोजित एक समारोह के दौरान प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने भी हाईकोर्ट में जजों की कमी की बात उठाई थी और कहा था कि मेरे यहां जजों की नियुक्ति संबंधी कोई फाइल जिस दिन आएगी उसे अगले ही दिन राष्ट्रपति के यहां भेज दिया जाएगा। हालांकि करीब एक साल का वक्त हो गया है कि हाईकोर्ट ने ही जजों की नियुक्ति के लिए नाम नहीं भेजे हैं। ऐसे में तय माना जा रहा है कि अगर अभी भी नाम भेजे जाते हैं तो कम से कम नियुक्तियों में 6 महीने का और वक्त लगेगा।

हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह कई चरणों से गुज़रती है।  प्रक्रिया के मुताबिक चीफ जस्टिस हाईकोर्ट के दो सीनियर जजों की सलाह और सहमति से लोअर जुडीशरी और वकीलों के बीच से हाईकोर्ट जज नियुक्त करने के लिए नाम भेजते हैं। इसके बाद यह नाम केन्द्र सरकार के कानून मंत्रालय, सुप्रीम कोर्ट, राज्य सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी जाते हैं। इन तमाम जगहों पर प्रकिया पूरी होने के बाद ही जजों की नियुक्ति का रास्ता साफ होता है। अभी तक देखा गया है कि इस प्रक्रिया में लगभग 6 महीने का समय लग जाता है।

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