बंटवारे के दंगा-पीड़ितों की दुर्दशा बयां करता है भीष्म साहनी का ‘तमस’, पढ़ें पुस्तक अंश…

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भीष्म साहनी का उपन्यास तमस।

‘तमस’ हिंदी साहित्यकार भीष्म साहनी द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। इस उपन्यास के लिए साहनी को 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1947 में भारत के विभाजन के समय दंगा-पीड़ित पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में यह उपन्यास लिखा गया है। उपन्यास विभाजन के परिणामस्वरूप भारत में प्रवासी सिख और हिंदू परिवारों की दुर्दशा से संबंधित है।

पेश हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘सुनते हैं सुअर मारना बड़ा कठिन काम है। हमारे बस का नहीं होगा हुजूर। खाल-बाल उतारने का काम तो कर दें। मारने का काम तो पिगरी वाले ही करते हैं।’ पिगरी वालों से करवाना हो तो तुमसे क्यों कहते?’यह काम तुम्ही करोगे।” और मुराद अली ने पाँच रुपए का चरमराता नोट निकाल कर जेब में से निकाल कर नत्थू के जुड़े हाथों के पीछे उसकपी जेब में ढूँस दिया था।’


‘रात को जिस देह को उत्तेजना और आग्रह के साथ वह लीजा की देह के साथ चिपकाए रहता था, इस समय वही देह उसे स्थूल और मांसल लग रही थी। लीजा को बहलाने के लिए वह केवल प्रेम का अभिनय कर रहा था, एक प्रकार का फर्ज अदा कर रहा था।’


‘सभी लोगों के बैठ जाने पर पुण्यात्मा जी धीरे-गंभीर आवाज में बोले, ‘सबसे पहले अपनी रक्षा का प्रबंध किया जाना चाहिए। सभी सदस्य अपने-अपने घर में एक-एक कनस्तर कड़वे तेल का रखें, एक-एक बोरी कच्चा या पक्का कोयला रखें। उबलता हुआ तेल शत्रु पर डाला जा सकता है, जलते अंगारे छत पर से फेंके जा सकते हैं।’


‘पत्नी को लापरवाही से बाल खोलते देख बेदना भरी उन्माद की लहर नत्थू के तन-बदन में उठी और उसने पागलों की तरह अपनी पत्नी को बाँहों में भर लिया और उसके गाल, उसके होंठ, उसके बाल, उसकी आँख बार-बार चूमने लगा, यह भावावेग उत्तरोत्तर बढ़ता गया और उसका रोम अपनी पत्नी के गदराए और उसकी उत्तेजित साँसों में खोने लगा।’


‘प्रकाशो की आँखें क्षण भर के लिए अल्लाह रक्खा के चेहरे पर ठिठकी रहीं, फिर उसने धीरे से मिठाई का टुकड़ा उठाया। टुकड़े को हाथ में ले लेने पर भी वह उससे उठ नहीं रहा था। प्रकाशो का चेहरा पीला पड़ गया था और हाथ काँपने लगा था मानो उसे सहसा बोध हुआ कि वह क्या कर रही है और उसका माँ-बाप को पता चले तो वे क्या कहेंगे। पर उसी वक्त आग्रह और उन्माद से भरी अल्लाह रक्खा की आँखों ने उसकी ओर देखा और प्रकाशो का हाथ अल्लाहरखा के मुँह तक जा पहुँचा।

पुस्तक की कीमत

पेपरबैक – 246 रुपये
हार्डकवर – 600 रुपये

प्रकाशक

राजकमल प्रकाशन

पृष्ठ संख्या- 310

लेखक के बारे में

जन्म : 8 अगस्त, 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में।
शिक्षा : हिन्दी-संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा घर में। स्कूल में उर्दू और अंग्रेजी। गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए., फिर पंजाब विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.।
बँटवारे से पूर्व थोड़ा व्यापार, साथ-ही-साथ मानद (ऑनरेरी) अध्यापन। बँटवारे के बाद पत्रकारिता, इप्टा नाटक मंडली में काम, बंबई में बेकारी। फिर अम्बाला में एक कॉलेज में तथा खालसा कॉलेज, अमृतसर में अध्यापन। तत्पश्चात् स्थायी रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में साहित्य का प्राध्यापन। इस बीच लगभग सात वर्ष ‘विदेशी भाषा प्रकाशन गृह’, मॉस्को में अनुवादक के रूप में कार्य। अपने इस प्रवासकाल में उन्होंने रूसी भाषा का यथेष्ट अध्ययन और लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का अनुवाद किया। करीब ढाई साल ‘नई कहानियाँ’ का सौजन्य-सम्पादन। प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध।
प्रकाशित पुस्तकें : भाग्यरेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ, वाङ्चू, शोभायात्रा, निशाचर, पाली, डायन (कहानी-संग्रह), झरोखे, कड़ियाँ, तमस, बसंती, मय्यादास की माड़ी, कुंतो, नीलू नीलिमा नीलोफर (उपन्यास), माधवी, हानूश, कबिरा खड़ा बज़ार में, मुआवजे, सम्पूर्ण नाटक (दो खंडों में) (नाटक), आज के अतीत (आत्मकथा), गुलेल का खेल (बालोपयोगी कहानियाँ)।
सम्मान : अन्य पुरस्कारों के अलावा तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली का शलाका सम्मान।
साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य रहे।
निधन : 11 जुलाई, 2003|

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