इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसके तहत शिया वक्फ बोर्ड के 6 सदस्यों को हटा दिया गया था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड से हटाए गए छह सदस्यों की फिर से बहाली के आदेश दिए। जस्टिस रंजन रॉय और जस्टिस एसएन अग्निहोत्री की  बेंच ने कहा कि वक्फ ऐक्ट 1995 के तहत हटाए गए सदस्यों को पक्ष रखने का मौका देना अनिवार्य है जो कि उन्हें नहीं दिया गया। हालांकि कोर्ट ने सरकार को यह छूट दी है कि वह कानून के मुताबिक नए सिरे से कार्रवाई कर सकती है। मामले की अगली सुनवाई 23 जून को होगी।

शिया वक्फ बोर्ड में 10 सदस्य हैं। इनमें से छह सदस्य अखिलेश यादव सरकार ने मई 2015 में नामित किए थे। इन्हीं छह सदस्यों को प्रदेश की भाजपा सरकार ने 15 जून को कार्रवाई करते हुए हटा दिया था। इनमें कौशांबी निवासी पूर्व राज्यसभा सदस्य अख्तर हसन रिजवी, मुरादाबाद के सैयद वली हैदर, मुजफ्फरनगर की अफशां जैदी, बरेली के सैयद आजिम हुसैन जैदी, शासन में विशेष सचिव नजमुल हसन रिजवी तथा आलिमा जैदी शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद शिया-सुन्नी वक्फ बोर्ड में हेरा-फेरी और भ्रष्टाचार की बात सामने आई थी। जिसके बाद अल्पसंख्यक मंत्री मोहसिन रजा ने इस मामले को उठाया था। वक्फ मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने भी बोर्ड में हेरा-फेरी की बात कही थी और मामले की जांच के लिए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच का आदेश देते हुए वक्फ बोर्ड के 6 सदस्यों को हटा दिया था। इस मामले की आंच पूर्ववर्ती सपा सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खान तक भी पहुंची है। हालांकि खान ने कहा है कि उन पर लगे आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं।

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