संसद में एनआरसी के ड्राफ्ट पर हंगामा मचा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर इस मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं और आश्चर्य नहीं आनेवाले चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। इस बीच बांग्लादेश ने यह कहकर भारत को झटका दे दिया है कि  असम में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं है। बांग्लादेश के सूचना प्रसारण मंत्री हसन उल हक इनु का कहना है कि ये भारत का आंतरिक मामला है, इसमें हमारा कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि असम में कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं हैं, जो लोग वहां रह रहे हैं वह काफी लंबे समय से रह रहे हैं।

सरकार और विपक्ष इस पर जो भी राजनीति करे, लेकिन यह सवाल सबके दिमाग में है आखिर अवैध ठहराये गये लोगों का क्या होगा? वैध नागरिकों की दूसरी सूची में जिन लोगों के नाम नहीं हैं उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता सता रही है। असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी होने के बाद असम में तनाव की स्थिति बनने की आशंका को देखते हुए गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश जारी किये हैं।

आज जारी दूसरी लिस्ट में 29 करोड़ आवेदकों में 2.90 करोड़ को वैध करार दिया गया है। यानि करीब 40 लाख लोग अवैध हैं। हालांकि सरकार लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 28 सितंबर तक का मौका दिया है। 30 सितंबर के बाद ऐसे लोगों को या तो गिरफ्तारी का सामना करना पड़ेगा या फिर उन्हें एक निश्चित समय सीमा के अंदर देश छोड़ना होगा। हालांकि, बांग्लादेश से आनेवालों के लिए संतोष का विषय यह है कि  बांग्लादेश अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार है।

इस बीच एनआरसी की लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायतें भी सामने आ रही है। मसलन फाइनल ड्राफ्ट में बीजेपी विधायक रमाकांत देउरी और उनके परिवार का नाम नहीं है। इसके अलावा सेना के पूर्व अधिकारी अजमल हक और मुख्यमंत्री के सुरक्षा दस्ते में रह चुके एक सहायक पुलिस निरीक्षक शाह आलम का नाम भी नहीं है। जबकि राज्य सरकार का दावा है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम आए हैं वो पूरी तरह पुख्ता दस्तावेजों के आधार पर आए हैं।

दरअसल, 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी भागकर भारत आ गए थे। बेशक बांग्लादेश ने यह कहा है कि वह अपने नागरिको को लेने को तैयार हैं लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होगा। बांग्लादेश इन अप्रवासियों को वापास लेने के लिए कुछ शर्तें रख सकता है। इतना हीं नहीं नागरिकता साबित नहीं कर पानेवावे बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को क्या जेल में डाला जाएगा? सरकार का यह कदम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार का बड़ा मुद्दा बन सकता है।

इतना हीं नहीं एनआरसी के इस कदम से मुस्लिम संगठन भी नाराज है। उन्हें लग रहा है कि यह सब बीजेपी सरकार के इशारे पर हो रहा है और मुस्लिमों को विशेष रुप से निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि यह ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनाया गया और इसमें केंद्र का कोई हस्तक्षेप नहीं था।

                                                                                                                       एपीएन ब्यूरो

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