राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने आज आरोप लगाया और कहा कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में विपक्ष के नेताओं को झूठे मामले में फंसाने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग (आईटी) जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने यहां पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की छवि पीएम मोदी सरकार के कार्यकाल में धूमिल हुई है तथा उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हुआ है। ब्यूरो के पूर्व संयुक्त निदेशक बी. आर. लाल की पुस्तक ‘हू ओन्स सीबीआई: द नेकेड ट्रुथ’ में बिहार के पशुपालन घोटाला समेत 12 से अधिक मामलों का उल्लेख करते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ब्यूरो राजनीतिक आकाओं के इशारे पर किसी को पकड़ती है या छोड़ती है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसका भंडाफोड़ और पुष्टि हाल में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के पूछे गये सवाल पर ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा की ओर से उच्चतम न्यायालय में दाखिल किये गये जवाब से हो रही है। जवाब में स्पष्ट किया गया है कि रेलवे होटल टेंडर घोटाले की जांच के समय ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री कार्यालय और बिहार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एवं उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक साथ मिलकर इस घोटाले में राजद अध्यक्ष एवं तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने के बावजूद उनके पटना स्थित आवास पर छापेमारी करने और गिरफ्तार करने की जल्दबाजी में थे।

सिंह ने कहा कि आलोक वर्मा ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि राकेश अस्थाना राजनीतिक रूप से प्रभावित होकर 11 वर्ष पुराने इस मामले को बिना पूछताछ के ही नियमित केस दर्ज करने की जल्दबाजी में थे जबकि यह मामला ब्यूरो में वर्ष 2013-14 में ही भेजा गया था। इस मामले को ब्यूरो ने बंद कर दिया था। उन्होंने कहा कि इस मामले को दो बार उच्चतम न्यायालय में खारिज भी कर दिया गया था। इन तथ्यों को अस्थाना ने दबाकर राजनीतिक दबाव के कारण तत्काल प्राथमिकी दर्ज पर करने पर उतारू थे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि वर्मा ने यह भी कहा है कि अस्थाना और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी के बराबर संपर्क में थे। इस मामले में ब्यूरो के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी अभियोजन पक्ष के निदेशक (डीओपी) तथा अतिरिक्त कानूनी सलाहकार ने कहा था कि साक्ष्य कमजोर है एवं प्राथमिकी करने से पहले साक्ष्यों को इकट्ठा करने की जरूरत है। उस समय बिहार में राजनीतिक हलचल थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ब्यूरो की योजनाओं की जानकारी थी।

सिंह ने कहा कि तत्कालीन निदेशक ने यह भी बताया कि इन घटनाओं की पुष्टि करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी और एक अन्य जिसके साथ बिहार के मुख्यमंत्री को विश्वास में लिया गया, उनका नाम भी वह बतायेंगे। पशुपालन घोटाले की जांच की जिम्मेवारी भी श्री अस्थाना ही संभाल रहे थे। श्री यादव को पशुपालन घोटाले के मामले में फंसा कर जेल में रखा गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक वर्मा के इस खुलासे के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार विपक्षी नेताओं को फंसाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने कहा कि इसी तरह केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम को फंसाया गया है। इन मुद्दों को लेकर राजद जनता के बीच जायेगा और अदालत का दरवाजा खटखटायेगा।

-साभार ईएनसी टाईम्स

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