उपचुनाव में मिल रहे शिकस्त के सिलसिले से बीजेपी रणनीतिकारों को विपक्षी गठजोड़ की ताकत का अहसास हो चुका है। इसकी तोड़ निकालने के लिए बीजेपी अति पिछड़ा कार्ड का ब्रह्मास्त्र चलाने की तैयारी में है।  इसी कड़ी में योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने कोटा के अंदर कोटा की नए सिरे से पैरवी भी शुरू कर दी है।

यूपी में पिछड़े वर्गों की 54 फीसदी आबादी वोटों के गणित के लिहाज से अहम हैं।  इनके साथ दलित बिरादरियों के जुड़ने से एक ताकतवर वोट बैंक बन जाता है।  बीएसपी के साथ गठजोड़ करके अखिलेश यादव ने इसी ताकत का इस्तेमाल उपचुनावों में किया और बीजेपी को पटखनी देने में कामयाब रहे।  इसकी काट ढूंढ रहे बीजेपी रणनीतिकारों की नजर पड़ी अति पिछड़ा-अति दलित आरक्षण के बावत राजनाथ सिंह के दिए फार्मूले पर।

साल 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था।  तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली इस समिति ने इस बात पर चिंता जताई थी कि सिर्फ एक जाति विशेष ने आरक्षण के ज्यादातर फायदे को हड़प लिया है।  समिति के मुताबिक यादवों का कुल ओबीसी जातियों में 19.4% शेयर था, जबकि बी कैटिगरी की 8 जातियां, जिनमें कुर्मी, लोध, जाट और गुर्जर शामिल थे, उनका शेयर 18.9% था। इसके अलावा 70 जातियों का आबादी के आधार पर 61.69% हिस्सा था।  समिति के नए फार्मूले के तहत  पिछड़ी जातियों की तीन कैटिगरी बनाई गयी जिसमें ए कैटिगरी यानि यादवों के लिए आरक्षण का 5% हिस्सा, बी कैटिगरी की जातियों को आरक्षण में 9% हिस्सा और तीसरी सी कैटिगरी में पिछड़ों की बाकी 70 जातियों को सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व, शिक्षा और आर्थिक हालत के आधार पर शेष 14% हिस्सा रखा गया।

लेकिन इससे पहले कि इस पर अमल होता बीजेपी के हाथों से सत्ता फिसल गयी।  बाद में मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, पर अब फिर से योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर अति पिछड़ा आरक्षण की मांग बुलंद कर रहे हैं।

गौरतलब है कि बुआ-बबुआ के साथ आने से होने वाले संभावित खतरे की आहट भांपकर इससे निपटने का खाका बनने लगा था।  खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 मार्च को विधानसभा में अति दलित, अति पिछड़ा आरक्षण देने की बात कही थी।

जानकार मानते हैं कि राजनैतिक तौर पर ये चतुराई भरा दांव है। मौजूदा वक्त में बीजेपी को एकजुट विपक्ष के मुकाबले के लिए ऐसे ही विकल्प की दरकार है।  बीजेपी की बागी सांसद इस मुद्दे को लेकर विपक्ष से कहीं ज्यादा तल्ख हैं और जातीय जनगणना की मांग उठा रही हैं।

ये बात दीगर है कि बदलते वक्त में  अति दलित और अति पिछड़ी जातियों में जबरदस्त उभार आया है, इनका बड़ा हिस्सा मानता है कि सामाजिक आंदोलन की प्रक्रिया में इनकी नुमाईंदगी मुक्कमल नहीं हो सकी है। इस बड़े तबके के असंतोष को भांप कर बीजेपी और उसके सहयोगी दल सक्रिय हो गए हैं।  इसके जरिए चुनावी समीकरण दुरुस्त करने की तैयारी तेज हो गयी है।

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