गठन के बाद से ही उत्तराखंड हड़ताली प्रदेश के नाम से जाना जाने लगा है। आए दिन कोई न कोई कर्मचारी संगठन हड़ताल, धरना और प्रदर्शन करते रहते हैं। दफ्तरों में अचानक काम बंद कर दिये जाते रहे हैं। ऊपर से करप्शन की मार। उसमें भी सरकारी काम न होने से पहाड़ के सुदूर इलाकों से आए जनता की स्थिति भयावह हो जाती है। स्थिति कितनी बदतर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सार्वजनिक तौर पर कर्मचारियों से हड़ताल नहीं करने की गुहार लगा चुके हैं। कामबंदी से पहले सरकार से बात करने को कह चुके हैं लेकिन कर्मचारी हैं कि जायज और नाजायज मांगों को लेकर हड़तालों पर जाने से बाज नही आ रहे हैं। अब जब कर्मचारी सरकार की नहीं सुन रहे तो उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सख्त रूख अख्तियार किया है।

हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से कर्मचारियों की हड़ताल को गैर कानूनी घोषित करने और हड़ताली कर्मचारी संगठनों की मान्यता रद्द कर उनके संगठनों पर जुर्माना लगाने के निर्देश दिए है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज तिवारी की खंडपीठ ने कहा कि हड़ताली कर्मचारियों पर काम नहीं तो वेतन नहीं का नियम लागू किया जाए और इनकी सर्विस ब्रेक की जाए। खंडपीठ ने ये भी कहा कि सरकार को कर्मचारी संगठनों की जायज मांगों को भी पूरा किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इसके लिए सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने का आदेश सरकार को दिए हैं। कोर्ट ने कमेटी में संबंधित विभागों के मुखिया और कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने को कहा है। इस कमेटी का गठन आठ हफ्ते में करने के साथ ही इसकी बैठक हर तीन महीने में एक बार आवश्यक रूप से करने के भी निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में डाक्टर , पैरा मेडिकल तक हड़ताल पर जा रहे हैं। जबकि इन पर हजारों जीवन को बचाने की जिम्मेदारी है। वहीं शिक्षकों के हड़ताल पर जाने से प्रदेश का शैक्षणिक माहौल भी खराब हो गया है। बीते बुधवार को कोर्ट ने हड़ताली आउटसोर्स कर्मियों पर एस्मा लगाने को सरकार से कहा था। कोर्ट के इस निर्देश पर सियासी प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं हैं। बीजेपी मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने इसका स्वागत किया है।

कांग्रेस ने हाई कोर्ट के निर्देश का स्वागत किया है। पीसीसी के मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी ने इसके साथ  ही प्रदेश सरकार को इस मामले में विफल करार दिया है। बुद्धिजीवी इस विषय को गंभीर बता रहे हैं।क्योंकि हड़ताल का सीधा असर जनता पर होता है।जो सरकारी फाइलों के आगे न बढ़ने से हताश और परेशान होती हैं।

उत्तराखंड हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद उम्मीद है कि, कर्मचारी संगठन अपने अड़ियल रवैये से बाज आएंगे और सरकार भी उनकी जायज मांगों पर गंभीरता से ध्यान देगी।

ब्यूरो रिपोर्ट,एपीएन

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