गुजरात विधान सभा चुनाव नजदीक आने वाला है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे चुनावी सरगर्मियां बढ़ने लगी है। पार्टियां गुजरात की सियासी मैदान में उतर चुकीं है। इस चुनावी सियासत की बाजी जीतने के लिए एक तरफ जहां कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ लगातार 22 सालों से गुजरात की सियासी राज की कमान संभाले भाजपा अपने ही गढ़ में मात न खाने की कोशिशों में लगा है।
ऐसे में भाजपा गुजरात में अपना सियासी राज कामय रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। वो चाहे गुजरात में लगातार पीएम मोदी का दौरा हो या अमित शाह की सियासी चाल। ऐसे में एक बात उठना लाजमी है कि आखिर लगातार 22 साल गुजरात में शासन करने के बाद भी क्या इस बार भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है? बताया जा रहा है कि इसकी वजह गुजरात के तीन तिकड़ी हैं जिन्होंने इस बार की चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।
जैसा कि गुजरात की राजनीति का अहम हिस्सा बन चुके पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर ये वो तीन तिकड़ी हैं जो भाजपा का खेल बदल सकते हैं। जैसा कि भाजपा ने इन्हें अपने पाला में डालने की पूरी कोशिश की थी लेकिन इन्होंने आने से मना कर दिया था। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की उम्र महज 24 साल है तो इसलिए वो चुनाव के मैदान में नहीं उतर सकते हैं, लेकिन गुजरात का एक अहम हिस्सों का समर्थन हार्दिक के झोले में है, इसका उदाहरण 2015 में पटेल आरक्षण की मांग के दौरान देखा जा चुका है। इनके पीछे खबर है कि ये कांग्रेस से हाथ मिला सकते हैं, हालांकि इसकी अभी पुष्टि नहीं कि गई है।
वहीं दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने भी भाजपा को अपना समर्थन देने से इनकार कर दिया है। क्योंकि उनका मानना है कि गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचार के पीछे गुजरात सरकार का हाथ है। बता दें कि गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन का जिग्नेश ने नेतृत्व किया था।
इन दोनों के अलावा ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर जो पाटीदारों को आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा वह देसी शराब से होने वाले नुकसान के चलते शराबबंदी के पक्षधर रहे हैं।