वैज्ञानिको को कैंसर जैसी बीमारी को लेकर एक बड़ी सफलता हासिल हुई है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बायो केमेस्ट्री विभाग के युवा वैज्ञानिक डॉ. मुनीश कुमार पांडेय कैंसर के इलाज की जिस तकनीकी पर काम कर रहे हैं, उससे आगे चलकर रोगियों के इलाज में कीमोथैरेपी की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी और उन दवाओं का विकल्प खोज लिया है, जो कैंसर के इलाज के दौरान कैंसर सेल्स के साथ सामान्य सेल्स को भी नुकसान पहुंचाती हैं। वैज्ञानिकों ने चूहों पर सफल प्रयोग किया है। हालांकि इसे मानव शरीर पर अभी इस्तेमाल नहीं किया गया है

11 वैज्ञानिकों की टीम ने यह सफल प्रयोग क्लेवलैंड क्लीनिक, अमेरिका में किया, जो विश्व में दूसरे स्थान पर है। वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व क्लेवलैंड क्लीनिक में कैंसर बायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. यांग ली ने किया, बीते साल वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय आए थे और यहां सात साल से 14 जुलाई तक कैंसर जागरूकता कार्यक्रम के तहत उनके कई लेक्चर भी आयोजित किए गए थे।

इस 11 सदस्यों की टीम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जैव रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. मुनीश भी शामिल रहें। डॉ. मुनीश ने बताया कि कैंसर की बीमारी से शरीर में ट्यूमर बन जाते हैं।  कीमोथेरेपी और दवाओं के जरिये इन ट्यूमर्स को खत्म किया जाता है। इलाज की इस प्रक्रिया में कैंसर सेल्स के साथ सामान्य सेल्स को भी नुकसान होता है। शरीर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मरीज को भी काफी पीड़ा होती है।

वैज्ञानिकों की टीम ने रिसर्च में पाया कि माइक्रो आरएनए यानी MIR-21 नार्मल सेल्स को खत्म करता है। इससे कैंसर सेल्स और प्रभावशाली हो जाती हैं।

टीम ने चूहों पर प्रयोग करते हुए MIR-21 को प्रभावहीन बनाने के लिए उसका एंटी सेंस चूहे में इंजेक्ट कर दिया और पाया कि चूहे के शरीर में बना ट्यूमर धीमे-धीमे छोटा हो गया और कुछ ट्यूमर पूरी तरह से खत्म हो गए। यह प्रयोग साल भर तक अमेरिका के क्लेवलैंड क्नीनिक में चला। हालांकि अभी मानव शरीर पर इसका प्रयोग नहीं हुआ है। इसे व्यवहारिक रूप से लागू करने में तकरीबन दस वर्ष का समय लग सकता है

इस रिसर्च को औंको जीन नामक प्रतिष्ठित जरनल में पब्लिशर नेचर स्प्रिंग की ओर से प्रकाशित किया गया है।

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