डॉक्टरों की लापरवाही और अमानवीय हरकत ने फिर एक व्यक्ति का बहूमुल्य जीवन छीन लिया। डॉकटरों की लापरवाही के चलते एक व्यक्ति की जान चली गई। प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में जिंदे लोगों को मृत घोषित करने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे है। जिंदे व्यक्ति को मृत घोषित करने का एक मामला उत्तराखंड के हरिद्वार से सामने आया है। इस मामले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कार्रवाई करते हुए सरकारी अस्पताल को नोटिस जारी किया है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हरिद्वार में एक व्यक्ति की वास्तविक मौत से आठ घंटे पहले ही उसे मृत घोषित करने और उसे मुर्दाघर में भेजने पर एक सरकारी अस्पताल को नोटिस जारी किया है।

20 जनवरी को मीडिया में आयी एक खबर का हवाला देते हुए आयोग ने कहा है कि 12 जनवरी को रात करीब साढ़े ग्यारह बजे भेल अस्पताल में डॉक्टरों ने 44 साल के एक मरीज को मृत घोषित कर दिया था। अगले दिन जब उसका पोस्टमार्टम किया गया तो पता चला कि वह डाक्टरों द्वारा मृत घोषित किये जाने के आठ घंटे बाद तक जिंदा था। उसे 12 जनवरी को छाती में दर्द और बेहोश होने के बाद भेल अस्पताल में लाया गया था।

खबर का स्वत: संज्ञान लेते हुए एनएचआरसी ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) और हरिद्वार भेल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को नोटिस जारी कर उनसे छह हफ्ते में डॉक्टरों पर की गयी कार्रवाई तथा पीड़ित परिवार को प्रदान की गयी राहत पर रिपोर्ट मांगी है।

उन्होंने कहा कि , संभव था कि यदि समय पर उस व्यक्ति का उपयुक्त इलाज किया गया होता तो उस व्यक्ति की जान बचायी जा सकती थी। बहुमूल्य मानव जीवन खो गया। डॉक्टरों की अमानवीय हरकत ने उस व्यक्ति के जीवन और स्वास्थ्य सुविधा के अधिकार का उल्लंघन किया।

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