भारत न्यायिक व्यवस्था के इतिहास में आज बड़ा ऐतिहासिक दिन है क्योंकि पहली बार सुप्रीम कोर्ट गर्मी की छुट्टियों में भी खुला है सुनवाई हो रही है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जे एस खेहर ने कुछ दिनों  पहले ही घोषणा की थी कि इस बार की गर्मी छुट्टियों में कोर्ट खुले रहेंगे और इस दौर के सबसे बड़े मुद्दे पर सुनवाई होगी। आज सुप्रीम कोर्ट में गर्मी छुट्टी का पहला दिन है और कोर्ट में इस वक्त के सबसे बड़े मामले तीन तलाक पर सुनवाई शुरू हो रही है। इस बार की पूरी गर्मी छुट्टियों में रोजाना तीन-तलाक के मुद्दे पर सुनवाई होगी ताकि इस मसले को जल्द सुलझाया जाए।

110चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि कोर्ट तीन तलाक पर समीक्षा करेगी कि वह इस्लाम को मूल हिस्सा है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी तीन तलाक और हलाला पर सुनवाई की जाएगी, बहुविवाह पर सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए मुख्यत: दो बिंदु निर्धारित किए हैं। पहला सुप्रीम कोर्ट इस बात पर भी सुनवाई करेगी कि क्या तीन तलाक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं दूसरा यह कि क्या तीन तलाक को पवित्र माना जा सकता है।

सात याचिकाओं पर होगी सुनवाई

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में कुल सात याचिकाओं पर सुनवाई होगी जिनमें से पांच पीड़ित महिलाओं की ओर से हैं। इस मामले की शुरूआत कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के बराबरी के हक को देखते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए की थी। बाद में पीड़ित महिलाओं ने तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती दे दी थी।

हालांकि इस मामले में शुरुआत में ही कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वह संवैधानिक दायरे में कानूनी मुद्दे पर विचार करेगा। किसी की व्यक्तिगत याचिकाओं पर विचार नहीं होगा। कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षकारों को लिखित दलीलें दाखिल करने के छूट देते हुए गर्मी की छुट्टियों में 11 मई से नियमित सुनवाई करने का फैसला लिया था।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड कर रहा है विरोध

तीन तलाक के मुद्दे पर सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कर रहा है। बोर्ड ने कोर्ट को अपने लिखित जवाब में कहा था कि यह पर्सनल लॉ से जुड़ा मुद्दा है और कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता। पर्सनल लॉ कुरान और हदीस की रोशनी में बना है। सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को दोबारा नहीं लिखा जा सकता। वहीं केंद्र सरकार ने तीन तलाक को मुस्लिम महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव बताया है। केंद्र सरकार ने कहा कि भारतीय संविधान किसी तरह के भेदभाव की इजाजत नहीं देता है।

केंद्र सरकार के सवाल

  • क्या एक बार में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद 25(1) के तहत संरक्षण प्राप्त है?
  • क्या अनुच्छेद 25 संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों के अधीन है। विशेष तौर पर अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) के।
  • क्या पर्सनल लॉ को अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा?
  • क्या तीन तलाक, बहु विवाह और निकाह हलाला भारत द्वारा हस्ताक्षरित अंतरराष्ट्रीय संधियों के दायित्वों के अनुरूप है?

वैसे तो न्याय प्रक्रिया में जाति और धर्म जैसे तथ्यों का कोई रोल नहीं होता, न्याय प्रक्रिया स्वतंत्र होकर अपना काम करती हैं। न्यायाधीश सिर्फ न्यायधीश ही होते हैं, उनकी कोई और पहचान नहीं हो सकती। लेकिन जो पीठ इस मामले की सुनवाई कर ही है वो भी काफी खास है। पीठ में पांच धर्मो के न्यायाधीश शामिल हैं। इनमें सिख, ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, और पारसी धर्मों के न्यायधीश शामिल हैं।

ये न्यायधीश करेंगे सुनवाई

  1. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर
  2. जस्टिस कुरियन जोसेफ
  3. जस्टिस रोहिंग्टन फली नारिमन
  4. जस्टिस उदय उमेश ललित
  5. जस्टिस एस. अब्दुल नजीर

वहीं इस सुनवाई में पीड़ित महिलाओं की ओर से देश के वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी पेश हुए हैं जबकि कपिल सिब्बल ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे हैं। अब मुस्लिम महिलाओं समेत देश के हर नागरिकों को इंतजार हैं कि पहली बार गर्मी की छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई से तीन तलाक का कोई स्थाई हल निकलेगा या नहीं।

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