सुप्रीम कोर्ट ने औरंगाबाद रेल हादसे पर याचिका खारिज करते हुए कहा, “इस अदालत के लिए यह निगरानी करना असंभव है कि कौन चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है”
उच्चतम न्यायालय ने आज अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा भरे गए एक आवेदन को औरंगाबाद रेल घटना को उजागर करते हुए खारिज कर दिया | 8 मई को रेलवे पटरियों पर सो रहे 16 प्रवासि एक खाली माल गाड़ी ट्रेन के नीचे आ गए थे|
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि “अदालत के लिए यह निगरानी करना संभव नहीं है कि कौन चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है।”
पीठ ने आगे टिप्पणी की “जब वे रेलवे पटरियों पर सोते हैं तो कोई इसे कैसे रोक सकता है?”
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत आवेदन को पढ़ने के बाद कहा “प्रत्येक अधिवक्ता अखबार में घटनाओं को पढ़ता है और हर विषय के बारे में जानकार हो जाता है। आपका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की कतरनों पर आधारित है और फिर सावधान के अनुच्छेद 32 के तहत आप चाहते हैं कि यह अदालत इस पर कार्यवाही करे|
इस पर राज्य तय करे गये क्या करना हैं। यह अदालत आपके आवेदन पर फैसला क्यों करे या सुने? ”
न्यायमूर्ति कौल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब उन्हें घर वापस आने के लिए सेवाएं प्रदान की जा रही थीं, तब भी वे पैदल चलते है तो ये प्रवासियों की व्यक्तिगत पसंद हैं|
पीठ ने आगे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या प्रवासियों को सड़क पर चलने से रोकने का कोई तरीका है?
एसजी मेहता ने कहा कि “राज्य अंतरराज्यीय परिवहन प्रदान कर रहे हैं। लेकिन अगर लोगों को गुस्सा आता है और परिवहन के इंतजार के बजाय पैदल चलना शुरू किया जाए तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है। हम केवल अनुरोध कर सकते हैं कि लोगों को चलना नहीं चाहिए। उन्हें रोकने के लिए बल प्रयोग करना और गलत होगा। ”