मुस्लिम प्रथाओं में कई सालों से चला आ रहा ‘तीन तलाक’ आज खत्म हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह 6 महीने के अंदर इस पर संसद में कानून बनाए। इस केस में खास बात यह रही कि पांच जजों में से तीन जजों का मत तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने का था। वहीं चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर तीन तलाक को रद्द नहीं करना चाहते थे। लेकिन 3-2 के अनुपात से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। Triple Talaq

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ‘तीन तलाक’ संविधान के  अनुच्छेद 14 जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है, का उल्लघंन करता है। कोर्ट में तीन तलाक की सुनवाई 6 दिन तक चली जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तीन तलाक की भुक्तभोगी सायरा बानो और सरकार के तरफ से पैरवी कर रहे अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा था  कि यह एक बड़ा तकलीफ देने वाली प्रथा है। यह प्रथा बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक नहीं है और न ही यह मुस्लिम समाज का अभिन्न हिस्सा है क्योंकि अन्य मुस्लिम देशों में इसे खत्म कर दिया गया है। वहीं दूसरी ओर पर्सनल लॉ बोर्ड के तरफ से कपिल सिब्बल ने अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा कि यह 1400 सालों से चली आ रही मुस्लिम समाज की प्रथा है। इसे रद्द करना मुनासिब नहीं होगा। उन्होंने इसे मुस्लिम समाज का अभिन्न हिस्सा बताया।

बता दें कि तीन तलाक की चर्चा राजीव गांधी सरकार के जमाने से चली आ रही है जिसमें 1985 में शाह बानो का केस सामने आया था। किंतु शाह बानो के उस समय के समाज और सायरा बानो के आज के समाज में काफी अंतर आ चुका है  शाहबानो मामले को जहां इस्लाम बनाम महिलाओं के अधिकार के रूप में चित्रित किया गया था। उस समय मुस्लिम समाज के भीतर से कोई आवाज नहीं उठ रही थी। कोई महिला संगठन सामने नहीं आया था। वहीं आज सायरा बानो मामले को इस्लाम बनाम महिला के अधिकार का मामला नहीं माना गया। अखिल भारतीय महिला मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठनों ने सायरा बानो का साथ दिया। हालांकि मीडिया और कोर्ट में मुस्लिम पुरूष समाज ने तीन तलाक को इस्लाम और मुस्लिम प्रथा के अंतर्गत लाने की कोशिश जरूर की थी। किंतु पांच में से तीन जजों ने इसे मानने से इंकार कर दिया। बता दें कि चूंकि यह धर्म से जुड़ा एक संवेदनशील मसला था इसलिए पांच जजों की खंडपीठ में पांचों जज अलग-अलग धर्मों से रिश्ता रखते थे। चीफ जस्टिस जहां सिख समुदाय से थे। वहीं जस्टिस कुरियन जोसेफ क्रिश्चिएन समुदाय से थे। इसी तरह  रोहिंग्‍टन फली नरीमन पारसी, जस्टिस उदय उमेश ललित हिंदू और जस्टिस एस अब्‍दुल नजीर मुस्लिम समुदाय से थे।Triple Talaq

हालांकि तीन तलाक के वर्तमान तरीके के विरोध में  मुस्लिम पुरूष समाज से भी आवाजें उठ रही थीं। उनका कहना था कि तीन तलाक को अचानक से और एक बार बोल देने से तलाक नहीं हो  जाता। उनके हिसाब से तीन तलाक की अलग परिभाषा थी किंतु मुस्लिम समाज में जिस तरह से कुछ पुरूष वर्ग ने इसे अपने स्वार्थ के लिए हथियार बनाया था, उस पर पाबंदी लगाने के लिए कोर्ट का ये फैसला ऐतिहासिक है।

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