भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 को सफलता पूर्वक लांच कर इतिहास रच दिया है। रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केन्द्र से सोमवार की शाम को 5:28 बजे लॉन्च किया गया। यह रॉकेट संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर गया है। GSLV मार्क 3 की कामयाबी के साथ भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम में शामिल होने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।

successful test conducted by GSLV Mark IIIआपको बता दें कि जीएसएलवी एमके-3 का वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है। केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा की मानें तो  जीएसएलवी मार्क-3 देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है। इसकी खास बात यही है कि इनके प्रक्षेपण के साथ ही डिजिटल भारत को मजबूती मिलेगी और भारत को ऐसी इंटरनेट सेवाएं मिलेगी जैसे पहले कभी नहीं मिलीं।

जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट को आज शाम 5 बजकर 28 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र के दूसरे लॉन्‍च पैड से लॉन्‍च किया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा है कि जीएसएलवी मार्क 3 के प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे से अधिक की उल्टी गिनती अपराह्न तीन बजकर 58 मिनट पर शुरू हुई थी।

केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा ने इसे भारत के लिए संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपग्रह बताते हुए कहा कि “यह प्रक्षेपण सफल रहा तो अकेला जीसैट-19 उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित पुराने किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा। क्योंकि  फिलहाल अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 ही संचार उपग्रह हैं और भारत ऐसी क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है जो फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट की पहुंच से दूर स्थानों को जोड़ने में महत्वपूर्ण हो।”

जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने लिखा कि जीएसएलवी मार्क-3 और जीसैट-19 के प्रक्षेपण के बाद भारत अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल और सैटेलाइट क्षमता हासिल करने के करीब पहुंच गया है। देश को इस पर गर्व है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस मौके पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि देश को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर गर्व है।

जीसैट-19 की करें तो यह पहली बार भारत में बनी लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया गया है। यानी कि भारत आज तक बाहर की बनी बैटरियों का इस्तेमाल करता था। इन बैटरियों को इसलिए बनाया ही गया है ताकि भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाया जा सके। इसके साथ ही ऐसी बैटरियों का कार और बस जैसे इलैक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

जीसैट-19 की सबसे नई बात यह है कि पहली बार उपग्रह पर कोई ट्रांसपोन्डर नहीं होगा। क्योंकि इसमें पहली बार इसरो पूरी तरह नए तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम का इस्तेमाल कर रहा है जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।

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