किसान पराली क्यों जलाते हैं? जानें क्यों नहीं अपनाते हैं कोई दूसरा विकल्प

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दिल्ली एनसीआर में बैठे लोग इस वक्त सोच रहे होंगे कि आखिर ये पंजाब और हरियाण के किसान पराली जलाते क्यों हैं? इस वक्त सभी हवा की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, आज सुबह 8 बजे दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 346 था। दिल्ली के लोधी रोड, जहांगीरपुरी, आरके पुरम और आईजीआई एयरपोर्ट (टी3) इलाकों में हवा की गुणवत्ता गंभीर बनी हुई है, जहां एक्यूआई रीडिंग क्रमश: 438, 491, 486 और 473 रही। निगरानी फर्म IQAir के अनुसार, शुक्रवार को, सबसे खतरनाक PM2.5 कणों का स्तर लगभग 35 गुना अधिक था। ये कण इतने छोटे हैं कि वे आपके रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं।

इस बार आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब में पराली जलाने में अचानक वृद्धि दर्ज की गई है। राज्य में रविवार को 1,068 खेतों में आग लगने की घटनाओं के साथ 740 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। मौसम विभाग ने कहा है कि पराली जलाने की घटनाएं बढ़ने के कारण अगले दो दिनों तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता में कोई सुधार होने की उम्मीद नहीं है।

किसान क्यों जलाते हैं पराली?

दरअसल नवंबर चल रहा है और किसान इस समय रबी फसल बोने की तैयारी कर रहे हैं। फसल बोने से पहले खेत की सफाई के लिए पराली जलाई जा रही है। ये पराली है क्या? आपको बता दें कि धान की कटाई के बाद जो हिस्सा खेत में बचा रह जाता है। उसे ही पराली कहते हैं। किसान जब ये पराली जलाते हैं तो हवा प्रदूषित होती है।

सवाल ये है कि क्या पराली जलाना ही समाधान है?

नहीं। दरअसल पंजाब में पराली जलाने को रोकने के लिए पराली निपटान की मशीनें किसानों को दी जा रही हैं जिससे कि वे पराली न जलाएं। अब सवाल ये कि किसान मशीनों का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं? इसका जवाब ये है कि पराली निपटान करने वाली मशीनें किराये पर लेनी पड़ती हैं और मशीन के इस्तेमाल से किसानों का पैसा खर्च होता है। जबकि पराली जलाने से वे आसानी से खेत साफ कर लेते हैं वो भी बिना कोई पैसा खर्च किए। अगर देखा जाए तो ये मशीनें महंगी आती हैं। केंद्र सरकार किसानों को इस पर सब्सिडी दे रही है। एक पहलू ये भी है कि मशीन चलाने में ईंधन भी लगता है तो वह भी महंगा साबित हो जाता है। मशीन इस्तेमाल करना किसानों के लिए महंगा सौदा है इसलिए वे इसे इस्तेमाल नहीं करते हैं।

एक विकल्प है पराली उद्योगों को बेचना। लेकिन इसकी उपलब्धता कम है। वहीं एक विकल्प बायो डिकम्पोजर का भी है। हालांकि पराली डिकम्पोज होने में महीना भर ले लेती है जिससे किसानों को फसल बोने में देरी होती है।

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