इंदिरा गांधी की बहू बनने से लेकर UPA की शिल्पकार तक… जानें Sonia Gandhi का अब तक का सियासी सफर

सोनिया ने 1997 में पहली बार कांग्रेस (Congress) अधिवेशन में हिस्सा लिया। 51 वर्ष की उम्र में 1997 में पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं सोनिया को मार्च 1998 में पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष को तौर पर चुना गया था।

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Sonia Gandhi

देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार या यूं कहे कि गांधी परिवार इस समय राजस्थान के रणथम्भौर के लग्जरी सुजान शेर बाग सफारी पार्क पहुंचा है। यहां सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) प्रियंका और राहुल गांधी के साथ अपना 76वां जन्मदिन मनाने पहुंची हुई हैं। 22 साल तक कांग्रेस की कमान संभालने के बाद 2022 में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया।

37 साल पहले साल 1985 में नये साल के जशन के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) अपने पारिवारिक दोस्तों के साथ रणथम्भौर पहुंचे थे। 1985 में राजीव अपने पूरे परिवार के साथ रणथम्भौर पहुंचे थे इस दौरान अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, अभिषेक बच्चन, श्वेता बच्चन भी यहां आए थे। यहां उनके आने के लिए शेरपुर गांव में हेलिपेड बनाया था। इसी हेलिपेड पर अब बाद गांधी परिवार दो सदस्य फिर से उतरे हैं।

Sonia Gandhi Ranthambore

Sonia Gandhi का भारत आना

9 दिसंबर 1946 को इटली के लुसियाना (Lusiana, Vicenza (Italy) में जन्मी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का पूरा नाम अन्टोनिया एड्विज अल्बीना मैनो है। 1965 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) के ट्रिनिटी कॉलेज (Trinity College) में पढ़ रहे राजीव गांधी की पहली बार सोनिया गांधी से मुलाकात एक ग्रीक रेस्तरां में हुई थी। सोनिया वहां स्मॉल लैंग्वेज कॉलेज में पढ़ रही थीं।

इसके तीन साल बाद यानी 1968 में राजीव और सोनिया की शादी हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों अनुसार हुई। जिसके बाद सोनिया ससुराल में अपनी सास और भारत की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के साथ रहने लगी। इसके बाद 1970 में राहुल गांधी और 1972 में प्रियंका गांधी का जन्म हुआ। 1983 में सोनिया ने इटली की नागरिकता छोड़कर भारतीय नागरिकता ग्रहण की थी।

Sonia and Rajiv Gandhi

शुरूआती दौर में सोनिया और राजीव गांधी दोनों ही परिवार से जुड़े राजनीति से दूर थे। राजीव पायलट थे और सोनिया घर में परिवार की देखभाल करती थीं। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव प्रधान मंत्री बने। लेकिन सोनिया गांधी इस दौरान भी जनसंपर्क से बचती रहीं।

सोनिया गांधी को 2004, 2007, 2009 में फोर्ब्स (Forbes) पत्रिका ने दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल किया था। वह दुनिया के 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में से भी एक रही हैं।

Indira Sonia Rahul Priyanka

Sonia Gandhi की सियासी पारी की शुरुआत

सोनिया गांधी को लेकर कहा जाता है कि वो सियासत में नहीं आना चाहती थीं। हालांकि, 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हुई राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया ने धीरे-धीरे राजनीति में आना शुरू किया। देश के पूर्व राष्ट्रपति और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे प्रणब मुखर्जी अपने संस्मरण में लिखते है कि सोनिया को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय करने के लिए पार्टी के कई नेता मनाने में लगे थे। उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही थी कि उनके बगैर कांग्रेस कई खेमों में बंटती चली जाएगी और भारतीय जनता पार्टी का विस्तार होता जाएगा।

सोनिया ने 1997 में पहली बार कांग्रेस (Congress) अधिवेशन में हिस्सा लिया। 51 वर्ष की उम्र में 1997 में पार्टी की प्राथमिक सदस्य बनीं सोनिया को मार्च 1998 में कांग्रेस के अध्यक्ष को तौर पर चुना गया। तब से 2017 तक वे पार्टी की अध्यक्ष बनी रहीं। आज तक यह एक रिकॉर्ड है। हालांकि, सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने पार्टी छोड़ दी।

Sonia Kesri 1998

सोनिया ने अपनी सियासी पारी के शुरुआती दौर में पद लेने के बजाए पार्टी के लिए प्रचार करना शुरू किया। इसके बाद 1998 में कांग्रेस के अध्यक्ष का पद संभालने के बाद पार्टी को मजबूत किया। लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी कमजोरियां जो थी कि वो न तो बहुत ही अच्छे से हिंदी बोलती थीं और न ही भारतीय राजनीति के दांवपेच से परिचित थीं। इसके बाद भी जिस तरह से उन्होंने पार्टी पर पकड़ बनाई वो काबिले तारीफ थी।

1999 में ही सोनिया ने कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तर प्रदेश के अमेठी से चुनाव लड़ा और दोनों जगह चुनाव जीता भी।

Sonia Gandhi Narsimha Rao

एक नजर सोनिया गांधी के नेतृत्व पर

दो दशकों से अधिक समय तक देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष रही सोनिया गांधी ने जहां पार्टी को करिश्माई नेतृत्व दिया, वहीं दूसरे तौर पर देखें तो वो पर्दे के पिछे से भूमिका निभाने वालो की कतार में ज्यादा नजर आईं। सोनिया ने 24 साल पहले जब पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष का पद संभाला तब देश की सियासत में अटल बिहारी वाजपेयी-लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी का जलवा कायम था। इसी दौरान देश में थर्ड फ्रंट की राजनीति भी अपने उफान पर थी। एक के बाद एक पार्टी थोड़ रहे क्षत्रपों के आगे कांग्रेस बेबस नजर आ रही थी। ऐसे हालतों में सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभालकर कांग्रेस को नई संजीवनी दी और उसे फिर से राजनीति के शीर्ष पर पहुंचाया। सोनिया गांधी ने 1998 से 2017 तक लगातार 19 साल और 2019 से 2022 के बीच पार्टी के अध्यक्ष पद को संभाला।

Sonia Mayawati

सोनिया गांधी के नेतृत्व में 1999 में कांग्रेस ने पहला लोकसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वाजपेयी की अगुवाई वाली BJP को उस चुनाव में करगिल युद्ध और पोखरण परमाणु विस्फोट का राजनीतिक लाभ मिला। जिसके चलते सोनिया गांधी की कांग्रेस तुछ खास नहीं कर पाई।

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2004 में कांग्रेस को चखाया सत्ता का सवाद

इसके बाद 2004 में उन्होंने पार्टी के चुनाव प्रचार का नेतृत्व करते हुए छह साल की सत्ता की उपलब्धियां और शाइनिंग इंडिया, फील गुड के नारे के साथ चुनाव में उतरे अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी की भाजपा को हराकर कांग्रेस की केंद्र में धमाकेदार वापसी कराई और कई दलों के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई।

2004 में उन्हीं (सोनिया गांधी) के नेतृत्व में जीत मिली। लेकिन जीत के बावजूद उन्होंने खुद प्रधान मंत्री बनने से इनकार करते हुए पीएम पद के लिए अर्थशास्त्री पुराने कांग्रेसी नेता मनमोहन सिंह के नाम को चुना, देश के कई बड़े सियासी जानकार इसको आजतक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक मानते हैं।

2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने राजनीतिक रुप से सबसे मजबूत सत्ताधारी बीजेपी के मुकाबले के लिए एक प्रभावी गठबंधन तैयार किया। इसके साथ ही वे कांग्रेस के साथ मिलती-जुलती विचारधारा वाले ऐसे दलों को अपने साथ लाने में सफल रहीं, जिनकी राजनीति ही कांग्रेस के विरोध में खड़ी हुई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्र की सरकार में कांग्रेस की वापसी हो गई।

हालांकि 2004 में मनमोहन सिंह को बेशक प्रधान मंत्री बनाया गया, लेकिन सोनिया ने संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन या संप्रग (UPA) की प्रमुख के तौर पर सरकार चलाने के राजनीतिक पक्ष को देखा। इसके अलावा राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council) के अध्यक्ष के तौर पर सरकार के नीतिगत पक्ष को भी उन्होंने प्रभावित किया।

Sonia Manmohan Rahul

2004 में उन्होंने अमेठी की सीट को अपने बेटे राहुल गांधी के लिए छोड़ दिया और खुद रायबरेली सीट से चुनाव लड़ा जहां से वह आज भी सांसद हैं। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे को लेकर 2006 में सोनिया ने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन फिर हुए उपचुनाव में वो जीतकर भी आईं।

2009 के आम चुनावों में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1991 के बाद पहली बार 200 से ज्यादा सीटें जीतीं और सत्ता में वापसी की। इस बार भी मनमोहन सिंह को ही प्रधान मंत्री बनाया गया।

सोनिया के नेतृत्व में ही 2004-2014 के बीच कांग्रेस के 10 साल के कार्यकाल में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, वन अधिकार, भोजन का अधिकार और उचित मुआवजे और पुनर्वास का अधिकार संबंधित कानूनों को केंद्र सरकार ने बनाया।

Rahul SOnia Gandhi

लेकिन 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की आंधी के बीच कांग्रेस ने अपने इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए मात्र 44 सीटें ही जीत पाई।

राज्यों में भी पार्टी को दी मजबूती

सोनिया गांधी ने 1998 में जब कांग्रेस की कमान संभाली तो कई राज्यों में कांग्रेस का सूरज ढल चुका था देश के राजनीतिक रूप से बड़े और महत्वपूर्ण राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया था। इसके अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से भी कांग्रेस बाहर हो चुकी थी। सोनिया गांधी ने इस चुनौती से निपटते हुए राज्यों में कांग्रेस को सांगठनिक रूप से मजबूत किया और उसे सत्ता में लाने में कामायाब रहीं।

Sonia Gehlot

सोनिया के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल में सरकार बनाई। सोनिया ने दिल्ली में शीला दीक्षित, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजस्थान में अशोक गहलोत और आंध्र प्रदेश में राजशेखर रेड्डी को मजबूती देने का काम किया।

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