सर्वशिक्षा अभियान का नारा है, सब पढ़ें...सब बढ़ें… मकसद साफ है कि देश के बच्चे शिक्षित होंगे तभी देश का विकास होगा। लेकिन गरीबी और बदहाली की मार झेल रहे बच्चे कैसे पढ़ेंगे। इस तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। इस नारे को सुनकर लोग भूल जाते हैं, बिरले ही होते हैं जो ऐसे नारों को अपनी जिंदगी में उतारते हैं। ऐसे ही बिरले लोगों में से एक हैं गाजीपुर जिले के छोटे से गांव के रहने वाले संतोष पांडे, जिनकी पहल से आज सैकड़ों बच्चे ना सिर्फ अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं बल्कि उनकी जिंदगी भी संवर रही है।

गाजीपुर जिले के कोरंडा थाना क्षेत्र के छोटे से गांव सबुआ चकिया के रामलीला मैदान में दाखिला के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया तो छात्रों और अभिभावकों की भीड़ उमड़ पड़ी। ऐसे वक्त में जब स्कूलों में दाखिले के लिए मारा-मारी रहती है। यहां सात पब्लिक स्कूल खुद गरीब बच्चों को दाखिला देने उनके द्वार पर चल कर आए और बच्चों के दाखिले के लिए फॉर्म भरे गए। गरीब बच्चों को बेहतर स्कूलों में शिक्षा दिलाने का संकल्प लेने वाले युवा समाजसेवी संतोष पांडे ने बताया कि वो मुंबई में काम करते थे। एक दिन उनके साथ काम करने वाले व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज हुआ तो उनके बच्चों की पढ़ाई लड़खड़ा गई। तब उन्होंने सोचा कि जब अच्छी खासी नौकरी करने वाले व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है, तो जो गरीब लोग हैं उनके बच्चों की पढ़ाई कैसे होती होगी।

तभी उन्होंने गरीब बच्चों को अपने पैसे से पढ़ाने का फैसला किया। उसके बाद वो अपने गांव आए और गरीब बच्चों को आस-पास के स्कूलों में दाखिला दिलाना शुरू कर दिया। वो अपने संसाधनों के बल पर बच्चों के स्कूल की फीस भरते गए। धीरे-धीरे और लोग भी उनके साथ जुड़ते गए और एक दो बच्चों के दाखिले से शुरू हुआ उनका सफर आज पांच सौ बच्चों के करीब पहुंच गया है। उनके इस प्रयास से बड़े-बड़े लोग जुड़े हैं। गाजीपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में सदर विधायक संगीता बलवंत भी पहुंची और उन्होंने संतोष पांडे के कार्यों को जमकर सराहना की।

प्राइवेट स्कूल में दाखिले की उम्मीद लिए आए छात्र-छात्राओं और अभिभावकों की खुशी की तो बात ही अलग थी। सभी ने संतोष पांडे के कार्यों को सराहा। कई लोग तो ऐसे थो जो अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं वहन कर पा रहे थे। लेकिन संतोष पांडे की वजह से आज उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। बहुत पुराना शेर है, मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया’ संतोष पांडे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मुंबई में काम करने वाले संतोष पांडे के साथ एक हादसा हुआ, जिसमें उनके साथ काम करने वाले एक व्यक्ति की तबीयत खराब हुई तो उनके बच्चों की पढ़ाई अधर में लटक गई। संतोष पांडे ने ना सिर्फ उनके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की बल्कि उसके बाद से उन्होंने गरीबों और वंचितों के बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने का फैसला कर लिया जो आज इस रूप में हमारे सामने है।

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